खरी-खोटी सुननेवाले खरे सर !
पत्रकार के रूप में विष्णु खरे ने शुरू किया कैरियर ! यह जो जरिया चुना था, उस समय यह इसके लिए नाकाफी रहा। जीवन भर हिन्दी साहित्य की सेवा में जुटे रहने वाले एक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान है। विष्णु खरे की प्रतिष्ठा समकालीन सृजन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण चिन्तक और विचारक के रूप में है । उनका जन्म छिंदवाड़ा (म.प्र.) में 9 फ़रवरी 1940 को हुआ। युवावस्था में वे महाविद्यालय की पढ़ाई करने इन्दौर आए । फिर क्रिश्चियन काॅलेज से अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री ली। 1962-63 तक वे इन्दौर से प्रकाशित दैनिक इन्दौर में उप-सम्पादक रहे, और फिर बाद में 1963 से 1975 तक मध्यप्रदेश तथा दिल्ली के महाविद्यालयों में प्राध्यापक के रूप में अध्यापन भी किया।
विष्णु खरे ने दुनिया के महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं के चयन और अनुवाद का विशिष्ट कार्य किया है, जिसके ज़रिए अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में प्रतिष्ठित विशिष्ट कवियों की रचनाओं का स्वर और मर्म भारतीय पाठक समूह तक सुलभ हुआ।
विष्णु खरे ‘साहित्य अकादेमी’ में उप सचिव के पद पर भी रहे। इसी बीच वे कवि, समीक्षक और पत्रकार के रूप में भी प्रतिष्ठित होते गए। उनकी चार दशक पुरानी सृजन-सक्रियता ने उन्हें देशभर में प्रतिष्ठा दिलायी है। इसी दरम्यान श्री खरे नवभारत टाइम्स से भी जुड़े। नवभारत टाइम्स में उन्होंने प्रभारी कार्यकारी सम्पादक और विचार प्रमुख के अलावा इसी पत्र के लखनऊ और जयपुर संस्करणों के सम्पादक का भी उत्तरदायित्व सम्भाला।
वे टाइम्स ऑफ इण्डिया में वरिष्ठ सहायक सम्पादक भी रहे। श्री खरे ने जवाहरलाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में दो वर्ष तक वरिष्ठ अध्येता के रूप में भी कार्य किया । वर्ष 1960 में श्री खरे का पहला प्रकाशन टीएस इलियट का अनुवाद ‘मरु प्रदेश और अन्य कविताएं’ हुआ। लघु पत्रिका ‘वयम्’ के सम्पादक रहे। ‘एक गैर रूमानी समय में’ उनका पहला काव्य संकलन था, जिसकी अधिकांश कविताएं पहचान सीरिज़ की पहली पुस्तिका ‘विष्णु खरे की कविताएं’ में प्रकाशित हुई। ‘खुद अपनी आंख से’, ‘सबकी आवाज़ के पर्दे में’, ‘आलोचना की पहली किताब’ उनकी अन्य पुस्तकें हैं।
विष्णु खरे ने दुनिया के महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं के चयन और अनुवाद का विशिष्ट कार्य किया है, जिसके ज़रिए विश्व परिदृश्य में प्रतिष्ठित विशिष्ट कवियों की रचनाओं का स्वर और मर्म भारतीय पाठक समूह तक सुलभ हुआ है। ‘द पीपुल्स एण्ड द सेल्फ’ श्री खरे के समसामयिक हिन्दी कविता के अंग्रेजी अनुवादों का संग्रह है। लोठार लुत्से के साथ हिन्दी कविता के जर्मन अनुवाद ‘डेअर ओक्सेन करेन’ के सम्पादन से जुड़ने के अलावा ‘यह चाकू समय’, ‘अंतिला योझेफ’, ‘हम सपने देखते हैं’, ‘मिक्लोश राट्नोती’, ‘कालेवाला’, ‘फिनी राष्ट्र काव्य’ इत्यादि उनके उल्लेखनीय अनुवाद हैं।
श्री विष्णु खरे विश्वकवि गोएठे की कालजयी कृति ‘फाउस्ट’ के अनुवाद प्रक्रिया में सक्रिय रहे हैं । सुप्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक पायनियर में वे नियमित रूप से फिल्म तथा साहित्य पर लिख रहे थे। तारीख 19 सितम्बर 2018 को श्री खरे का असामयिक निधन हो गया। भौतिक रूप से मैंने भी ऐसी शख़्सियत से मिला है और उन्हें सुना । खरे सर को विनम्र श्रद्धांजलि! वे जहाँ को प्रस्थान किये होंगे, वहाँ अवश्य ही खरी-खोटी सुनाएंगे !