यह कैसी सेवाभाव ?
मैंने ऐसी कथित मंगलव्रती और गुरुवारव्रती महिला को जानता हूँ, जो सास-ससुर को भूल रंगून से आये बैलून वाले पिया को और उनसे उत्पन्न संतान के सिवाय और किसी के बारे में नहीं सोचती है, वे भीखमंगे को दान नहीं करेगी, तो रिक्शेवाले से किराये देने में उलझेगी ! यह कैसी आस्तिकता है, भाई ! जो पत्थर की मूर्ति के सिवाय सजीव मूर्त्ति पर ध्यान नहीं देती ! यानी ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूजे ना कोई !’
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अगर आप में सेवा की भावना नहीं है, अगर आप दूसरे के प्रति मनभेद पालते हैं, तो यह कैसी आस्तिकता है ? भीतरघाती व्यक्तियों से बचकर ही रहना चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ! अगर मतभेद है तो ‘बेबाक़ीपन’ होंगे ही ! आप अपने हर कृत्य के लिए शाबासी नहीं पा सकते ! लोग हर समय आपकी प्रशंसा नहीं कर सकते! मैं दकियानूसी कृत्य को नहीं अपना सकता ! तभी तो मुझे ‘छद्म आस्तिकता’ पसंद नहीं है।