वाया बेबाकी
अगर आप में सेवा की भावना नहीं है, अगर आप दूसरे के प्रति मनभेद पालते हैं, तो यह कैसी आस्तिकता है ? भीतरघाती व्यक्तियों से बचकर ही रहना चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ! अगर मतभेद है तो ‘बेबाक़ीपन’ होंगे ही ! आप अपने हर कृत्य के लिए शाबासी नहीं पा सकते ! लोग हर समय आपकी प्रशंसा नहीं कर सकते! मैं दकियानूसी कृत्य को नहीं अपना सकता ! तभी तो मुझे ‘छद्म आस्तिकता’ पसंद नहीं है।
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स्त्रीदेह पुरुषों की कमजोरी है, तभी तो चालाक स्त्री ऐसे निरीह पुरुष को फाँसकर मनमाना कार्य निकालती हैं ! हमने इस पोस्ट में उन्हें चरित्रहीनता से कहाँ जोड़ा है, भाई ? हाँ, इसके उलट भी है, क्योंकि पुरुष जबतक चरित्रहीन नहीं होंगे, तब तक स्त्री बेवफा नहीं हो सकती ! अभी जो तथ्यात्मक है, वही लिखा है ! एक सुंदर युवती किसी कुरूप अथवा काला युवक से शादी तो दूर उसे ‘आई लव यू’ तक क्यों नहीं कहती है ?