लघुकथा

सनम तेरी कसम!

आत्महत्या करने का वह पल टल गया था. निधि बहुत खुश थी. उसे दादी के फोन की बात याद आ रही थी.

”सात समंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई.” रेडियो पर गाना चल रहा था.

”सचमुच मैंने यही तो किया था!” निधि सोच के समंदर में डूब गई थी.

निमेष के लिए उसने सारे नाते-रिश्तों का समंदर पार किया था, सखी-सहेलियों का समंदर छोड़ा था, अपने कैरियर का समंदर भी लांघा था और उसके पीछे-पीछे दिल्ली से बैंगलोर आ गई थी.

अब उसे केवल निमेष का ही भरोसा था. अपनी मर्जी से शादी करके उसने सारे नाते तो तोड़ ही लिए थे, वाट्सऐप का दीवानापन भी छोड़ना पड़ा था, फेसबुक पर आते भी डरती थी. कभी-कभार सखी-सहेलियों से मैसेंजर पर बात भले ही हो जाती थी. निमेष अपनी नौकरी में व्यस्त रहता था, उसे अभी नौकरी मिली नहीं थी. सारा दिन क्या करती? कभी-कभी दादी ने बात करना नहीं छोड़ा था, बस उसी का सहारा था.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ था. उसका जन्मदिन था. पर उसका जन्मदिन मनाता कौन? मनाने वाले तो पीछे छूट गए थे!

सुबह जल्दी-जल्दी तैयार होकर निमेष काम के लिए चला गया था. पिछले दो-तीन सालों से निमेष उसके जन्मदिन पर क्या-क्या नहीं करता था! वह कई दिनों से उस दिन का इंतजार करता, पर आज! आज उसके लिए काम ही प्रधान हो गया था!

इन्हीं विचारों ने उसे मायूस कर दिया था. तभी दादी मां का फोन आ गया था.

”जन्मदिन मुबारक हो निधि, सदा खुश रहो.” दादी मां ने आशीर्वाद दिया था.

”धन्यवाद दादी मां, शुक्र है किसी ने तो मेरा जन्मदिन याद रखा!” उसकी रुलाई छूट गई.

”क्यों निमेष ने विश नहीं किया?”

”छोड़ो दादी मां, वे दिन फाख्ता हो गए! अब उनके लिए काम ही सब कुछ है, निधि जाए भाड़ में! मैंने उनके लिए सब कुछ छोड़ा और वे मुझे ही भूल गए! इससे तो मर ही जाऊं, तो अच्छा है.”

”निधि, एक बार मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था. तेरे बाबा मेरा जन्मदिन भूल गए थे. निमेष तो फिर भी कोरोना ड्यूटी में तैनात होने के कारण मन से भी व्यस्त है, पर तेरे बाबा के साथ ऐसा कुछ नहीं था. मैंने उस दिन उनकी पसंद का खाना खीर-कचौड़ी बनाए थे, उससे भी उनको कोई विशेष दिन होने का ध्यान नहीं आया.”

”सच्ची दादी! ऐसा हुआ था?”

”हां, आगे सुन, कई दिन बाद एक दिन वे रानीहार लेकर आए और मुझे पहनाते हुए कहा- ”पगली, उस दिन याद दिला देती न! चलो आज फिर तुम्हारा जन्मदिन मन गया.” सच पूछो तो मुझे रानीहार की इच्छा या जरूरत नहीं थी, मेरा रानीहार तो मेरे पास ही था! तूने पहले भी अपना रास्ता खुद ही चुना था. अब भी रास्ता चुनना अपने हाथ में है. मौत या रानीहार!” दादी मां ने फोन रख दिया था.

”कितने भी तू कर ले सितम, हँस-हँस के सहेंगे हम
ये प्यार ना होगा कम, सनम तेरी कसम, सनम तेरी कसम!” निधि गुनगुना रही थी.

10-9.20
(विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर विशेष)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सनम तेरी कसम!

  • लीला तिवानी

    सही समय पर सही राय मिल जाए, तो आत्महत्या करने का विकट पल टल जाता है, अवसाद मिट जाता है और खुशियों के आने की आहट आ जाती है, जीवन का कमल फिर से खिल जाता है और निधि अपनी असली निधि को पहचानकर गाने-गुनगुनाने लगती है.

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