गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये कुदरत का कहर है या किस्मत का असर है
कोई दीवार न छत है लोग कहते हैं ये घर है ।

कोई बहार इस तरफ कभी नहीं आती
बदल रहा है जहां मुफलिसी नहीं जाती
जल रही है जिंदगी रेत सी तो जलने दो
छत नहीं है मुझको बरसात का डर है।

कितना मासूम ये बचपन दिखाई देता है
इनकी खामोशियों का शोर सुनाई देता है
कौन कहता है ये दुनियां है दिलवालों की
कौन जीता है कौन मरता किसे खबर है।

जमीं उनकी और उनका आसमां है यहां
दौलतें हासिल हैं जिन्हें उनको होश कहां
सलाम करते हैं सब रुतबा ए शहंशाही को
किसी गरीब पे ,जानिब, यहां किसकी नज़र है।

ये कुदरत का कहर है या किस्मत का असर है
कोई दीवार न छत है लोग कहते हैं ये घर है ।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर