गीतिका/ग़ज़ल

आदमी

*आदमी*

ऐश के सामान करता जा रहा है आदमी
ज़िंदगी दोज़ख बनाता जा रहा है आदमी

हर नई तकनीक को अपना रहा है आदमी
बद गुमा बे मौत मरता जा रहा है आदमी |

नफरतो के शज़र की छाया तले है पल रहा
अब गुनाहों की डगर पर जा रहा है आदमी |

प्यार करने की रवायत को भुलाता जा रहा
नफ़रतो के साथ सिकता जा रहा है आदमी |

रोज़ लड़ता रोज़ घुटता और मिटता आदमी
ज़िंदगी से दूर होता जा रहा है आदमी |

मन ‘मृदुल’ है ग़मज़दा बस दर ब दर भटका किया ,
रेत को दरिया समझता जा रहा है आदमी |
मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016