संक्रमणकाल में साहित्यिक गतिविधियाँ
कोरोनाकाल एक संक्रमणकाल है, एतदर्थ इस संक्रमण के दौर में मन के अंदर आस्था और श्रद्धा निहित होनी चाहिए, न कि बाह्यपूजा !
यज्ञ प्रयोजन और भूमि पूजन अभी के समय में नहीं हो तो बेहतर है ! भूमिपूजन को लेकर आपकी सहमति आशावादी हो सकती है, किन्तु यथार्थवादी सोच लिए नहीं।
कोरोना से उबरने पर पूजा-अर्चना को देखें, तो श्रेयस्कर होगी।
××××××××
साहित्य कर्म और रंगकर्म को कैसे रोक सकते हैं ? सिनेमा में इंटरवल से पहले सच दिखाई जाती है।
इसे देखने का साहस रखिये ! जबतक हम घटना की वीभत्सता को नहीं समझेंगे, तब तक हम संवेदनशील कैसे हो सकते हैं ? हाँ, युवावर्ग घटना से उत्पन्न परिणाम से डरे !
क्या हम रावण या अन्य दुराचारियों के कुकृत्यकथा को माइनस कर ‘रामायण’ पढ़ेंगे, तो श्रीराम के किस सुकृत्य का अहसास हो पायेगा ! इसलिए राम-रावण यानी उभयपक्षों कि कथा को हम पढ़ते हैं !