कुछ तो जबाब दो
जब बस्तियों में आग
सुलग रही थी तो तुम
क्या सोच कर प्रेम- कविताएं
लिख रहे थे।
जब हवाएं गर्म लू लेकर
बह रही थीं तो
तुम क्या सोच कर
दुआ दुआ बांच रहे थे ।
क्या तुम्हारे दुआ-दुआ
बांटने से
ये लू भरी हवाएं
एकदम शीतल हो जाएंगी
या सुलगती बस्तियां
तुम्हारी प्रेम-कविताओं से
फिर ठंडी हो जाएगीं ।
तुम्हारे तगमे
लौटा देने से
बच्चों के टूटे खिलौने
फिर वापस मिल जाएंगे ।
तुम वक्त के खिलाफ
साजिश कर रहे हो
या वक्त की साजिश में शामिल हो ।
मेरे प्रिय कवि
कुछ तो जवाब दो
वरना तुम्हारे शब्द
कहीं तुम्हारे खिलाफ ही
गवाही न दे दें ।
और तुम फिर अपने पक्ष में
कोई दलील न दे पाओ
तुम सच में किस ओर खड़े हो
कुछ तो जवाब दो ।।