साफी, दातुन और सत्तू
हर व्यक्ति को रोज बैठकर ‘पोंछे’ (साफी) लगाने चाहिए, चलते हुए ब्रश (दातुन या दतवन) करने चाहिए और रोज नाश्ते में ‘सत्तू’ खाने चाहिए।
हम जितनी ‘चिकनाई’ चीज खाएंगे, उतनी ही शरीर को क्षति पहुँचेगी !
आप मोटे चावल, मोटी रोटी, गोटा दाल, मौसमी सब्जी नहीं खायेंगे, तो शरीर में कई बीमारियाँ गृह कर जाएगी।
रंग वाले हरी सब्जियों से अच्छा है, ‘खमरालु’ का चोखा खा लें !
मेरा परिवार अभी भी खाँसी होने पर ‘हरवाकस पत्ते’ का जूस पीते हैं ! किसी गरीब को बीपी बढ़ते व डायबिटीज होते सुना है । ऐसी घटना की सूचना अत्यल्प ही है !
फिर तो–
“मुलायम धूप,
गर्म बर्फ,
नीली घास,
रात्रि इंद्रधनुष,
सफ़ेद क्रोध,
अग्नि ठंड,
क्षमातु बाघ,
क्रुद्ध ममता,
अडिग संत,
सभी विपरीत है
और इनके ज़ज़्बे के साथ,
जो प्रक्रम या इंसान का अक़्स
उभरता है….
वो मेरे मनु का है
कि तुम्हारे शब्द स्वागत के लिए बने हैं
मुलायमी स्वागत के लिए,
जैसे- रूह को रूई से ढँक दिया गया हो
या पत्ते पर रंग-बिरंगे चींटी दौड़ लगा रहे हों
कि ऊँघते ऐसे लोगों के लिए
धरती ही बिछौना हो
हाँ, भइया,
पैसे से नींद की गोली खरीद सकते हो,
सिर्फ़ नींद नहीं !”