पढो कबीर या तुलसी के पद
मन में रखना तुम सम्मान
निजभाषा, निजराष्ट्र हेतु
हो सबके मन में कुछ तो मान।।
आदिकाव्य के चंदवरदाई
भक्ति – काव्य के सुरदास
रीतिकाल के लाल बिहारी
आधुनिक युग के पंत – प्रसाद।।
मीराबाई के गिरीधर नागर
सूरदास के नटखट श्याम
घनानंद ,रसखान , बिहारी
रीतिकाल के रस सुख- धाम।।
वीर रसात्मक सुंदर रचना
रचीं सुभद्रा कुमारी चौहान
बाल्यावस्था से अबतक है
*झाँसी वाली* रानी का ध्यान ।।
स्नेहमयी प्रकृति की गोद में
पंत ने पायी ममता भरपूर
हिंदी साहित्य को दे दिया
सृष्टि युक्त रचनाएँ प्रचूर ।।
भारतेन्दु की निजभाषा
*सब उन्नति को मूल*
बोलो हिंदी के पाठक
क्या तुम गये हो भूल?
हिंदी में हम काम करें
हिंदी का हम ध्यान धरें
एक दिवस नहीं प्रतिदिन
हम हिंदी पर मान करें।।
हिंदी है समृद्ध शालिनी
गौरवशाली है इतिहास
बहिष्कार करें हम उनका
जहँ भी हो हिंदी परिहास।।
हम हिंदी के छोटे सेवक
निज दायित्व निर्वाह करें
नपे – तुले शब्दों को लेकर
हिंदी का गुण बखान करें ।।
— सीमा शर्मा सरोज