कविता – ममतामयी नारी
मैं नारी हूँ माँ,अम्माँ, जननी,मैया कहते मुझको
बन ममतामयी चाह पद निभाना हैं सब मुझको।
नवरात्रों में पुजा होती, कंजक की दुर्गा सी सबके,
धन की देवी सी लक्ष्मी गान है अपनापन बनके।
मातृभूमि की रक्षा हित हुई वीरांगना लक्ष्मी बाई,
दुश्मनों विरोध में सबसे पहले अलख जगा छाई|
मीरा बनकर कान्हा की भक्ति में महल पट भुलाई,
पति की सर्वस्ब बन अर्धागिनी पावन हक मुझको|
मैं सवरी के बेरों में हूँ,दोषी भी पत्थर अहिल्या में,
यशुमति मैया भी कृष्ण की,राम माँ कौशल्या में|
गीता भी सीता भी राधा भी शाश्वत प्रेम पुराण हूँ,
लेखनी अरुंधति की और कविता महादेवी आन हूँ.।
सत्यवान की सावित्री हूँ,कल कल करती सरिता हूँ,
मैं खेतों की रानी अन्नपूर्णा, चुनौती में गर्बिता हूँ।.
बन ममतामयी चाह पद सा निभाना हैं सब मुझको।।
कवियों गाथा में नारी ईश्वर की अनुपम रचना तुम-
प्रकृति का श्रृंगार, त्याग,समर्पण,साहस, शक्ति तुम।
रिश्तों में घर की मुस्कान हर पैगाम तुम्हीं हो।
श्रद्धा की तुम हो परिभाषा नेक कामों नाम तुम्हीं हो।
— रेखा मोहन