गीत
रिश्तों नातो के ढंग कमजोर से, टूट जाते हैं खींचे हम जोर से.
पड़ी हैं इनमे मतलब की गांठे,अब खुलती नहीं ये प्रीति डोर से.
पहले तो हममें शराफ़त थी, अब तो कामयाब से और हो गए,
इसीलिए हमसे दूर होकर से , मन में भरे प्रश्न ले भीति हो गए.
जब तक उनको हां करता था, तब तक उनका बच्चा लगता था,
अब कम मिलने की आदत से, दंग व्यबहार से रीती हो गए.
अब मन का राज़ भी नहीं बताता,इसलिए खफा हिमायती हो गए.
अपनों से लड़ने से पहले खुद से रूठों,तभी दूरी मजबूरी में हो गए
चाहे पाए चाहे खोये हर बात उनकी से , व्यग्य बलवती लौ हो गए.
मन में मोह तब नहीं रहता फिर शेष , अपने में अज़नबी हो गए
दूर की दुआ प्रणाम तक सिमित हो , झूठी हंसी लेकर नाती हो गए.
— रेखा मोहन