गौरांग प्रभु के विचारों से प्रभावित होकर कीर्तनिया बन वापस अपने गाँव कई वाद्ययंत्रों और गायकों के साथ लौट रहे थे, बालक अटकू को यह भा गया और सीखने सीखाने की जिद कर बैठे. कई दिनों तक रियाज़ चला. किशोरवय तक 18 वाद्ययंत्रों से मेल कराने में पारंगतता हासिल कर लिये तथा चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन संस्कार में सबसे युवा मूलगैन हो गए. बाद में अमृत पंडित ने अपनी पुत्री मैनी की शादी अटकू से कर दिए. कालान्तर में बांग्ला कीर्तन को अंगिका बोली में मिश्रितकर बाँग्लांगिका भाषा का ईजाद कर इसमें लोककीर्तन किया. संस्कृति लिए एक लोककीर्तन गीत का उदाहरण-
राजा पाखड़ जाकर नचबै रे, नचबै गयबै उछलबै रे, छेलै एक किशन कन्हैया, ओकर संगी चेतन भैया, मोरर पंख स खेलबै रे, बगिया म बहुत पाखर र गाछ, दुनिया क राजा छेके साँच, पूरब स पछिम जइबे रे, कि माखन चुरइबै, गोबर्धन उठइबै, राजा पाखड़ जाकर नाचबै रे, नाचबै गयबै उछलबै रे.