कविता

बेरोजगारी

खाली कंधों पर थोड़ा सा भार चाहिए
बेरोजगार हूंँ साहब रोजगार चाहिए ।

जेब में पैसे नहीं है डिग्री लिए फिरते हैं
दिनों दिन अपनी नजरों में गिरते हैं
कामयाबी के अब खुले द्वार चाहिए
बेरोजगार हूंँ साहब रोजगार चाहिए ।

हुनर की कमी नहीं भारत के इन सड़कों पर
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन बच्चों पर
लिखते लिखते मेरी कलम तक घिस गई यार
नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गई
नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए
बेरोजगार हूंँ साहब रोजगार चाहिए ।।

दिन रात एक कर के मेहनत बहुत करता हूंँ
सूखी रोटी खाकर भी चैन से पेट भरता हूँ
भष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे है
रिश्वत की कमाई से खूब मजे उड़ा रहे हैं
नौकरी पाने के लिए यहां औजार चाहिए
बेरोजगार हूंँ साहब रोजगार चाहिए।।

— सारिका “जागृति”

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)