सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 11
दो गीत
1.लगता है मधुऋतु आई है
जब हरी-हरी हो वसुंधरा,
अंबर सज्ज्न-मन-सम निर्मल,
जब बहे बयार बसंती जब,
लगता है मधुऋतु आई है.
गेंदा-गुलाब जब फूले हों,
खेतों की सरसों पीली हो,
आमों में बौर लगें जब तो,
लगता है मधुऋतु आई है.
कहीं गुटरूं-गूं कहीं चूं-चूं-चूं,
कहीं कल मयूर की है क्याऊं,
जब कोयल करती कूं-कूं-कूं,
लगता है मधुऋतु आई है.
मस्ती हो जब सबके मन में,
हंसती जब सारी जगती हो,
मदहोशी सब पर हो छाई,
लगता है मधुऋतु आई है.
मनभावन हो मौसम प्यारा,
बागों में पेंगें झूलों की,
जब तन-मन दोनों हों फूले
लगता है मधुऋतु आई है.
जब भौरों की हो गुन-गुन-गुन,
घुंघरू की चहुं दिशि छुन-छुन-छुन,
सुंदर तितली से सजे चमन,
लगता है मधुऋतु आई है.
28.2.1986
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2.गाएगा फिर नया तराना
कभी-कभी मन में आता है, क्या यह जीना भी है जीना!
रोटी के बदले में ग़म खाना, जब पीना तब आंसू पीना.
राशन महंगा, कपड़ा महंगा, केवल मानव ही है सस्ता,
पानी पर कर, जीने पर कर, मरने पर भी कर है लगता.
पैसा देकर भी खाने को, शुद्ध वस्तु जुटा नहीं पाते हैं,
मिलावटी भोजन खाने से, मानव दुःख से घिर जाते हैं.
राशन और बस की पंक्ति में, खड़े-खड़े दिन कट जाते हैं,
पानी-बिजली जब जी चाहे, मर्जी से आते-जाते हैं.
रोज सुबह अखबार उठाकर, होश सभी के गुम हो जाते,
कुछ मरने की, कुछ जलने की, खबरें पढ़ सिर हैं चकराते.
हत्याओं का दौर चला है, रहा न जीवन पर विश्वास,
सपने बुनते हैं सालों के, रही न पल भर की भी आस.
लूटपाट, बटमार, डकैती, होती है डंके की चोट,
दोष देखते हम गैरों के, अपनों में ही भारी खोट.
आजादी मांगी थी हमने, रामराज्य अपनाने को,
या हत्या का खेल खेलने, जीवन दुःखी बनाने को!
रिश्वतखोरी, चोरबाजारी, भ्रष्टाचार सताते हैं,
भाई-भतीजावाद के कारण, योग्य व्यक्ति रह जाते हैं.
बेईमान अकड़कर चलते, सच्चे डरते रहते हैं,
चापलूस आगे बढ़ जाते, सीधे पीछे रहते हैं.
काश! सभी जन रहें प्रेम से, नहीं किसी को कभी सताएं,
सबसे हिलमिल रहना सीखें, सबको हम खुशियां दे पाएं.
काश! स्वतंत्रता के सौरभ को, हम इस धरती पर छितराएं,
स्वर्ग उतर आए जीवन में, खुशियां-ही-खुशियां बिछ जाएं.
धैर्य धरो यह भी संभव है, आएगा फिर समय सुहाना,
अंधियारे के बाद उजाला, गाएगा फिर नया तराना.
-लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
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जय विजय की वेबसाइट है-
https://jayvijay.co/author/leelatewani/
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प्रकृति के नियमानुसार मौसम में परिवर्तन आने लगा है, उसका भी यही संदेश है-,
”जिस दिन तम हट जाएगा
यह जग जगमग हो जाएगा
है कठिन, मगर होगा ज़रूर
वह दिन निश्चय ही आएगा.”
एक दिन कोरोना भी भाग जाएगा, संसार फिर से नया तराना गाएगा.