मायूसी
करीब तीन साल पहले की बात है।मेरे एक करीबी मित्र की पत्नी ने अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। आज के समय में पढ़े लिखे लोगों में भी बेटी के जन्म को निहायत ही गिरी नजरों से देखा जाता है,ये उस दिन पहली बार साक्षात देखा।
मेरे लिए यकीन करना कठिन हो रहा था कि मेरे मित्र महोदय के चेहरे के ऐसे भाव थे जैसे बेटी ने जन्म नहीं लिया, बल्कि किसी की मौत हो गई हो। उनके लिए कुछ बोल पाना भी कठिन हो रहा था।
अफसोस तो इस बात का हो रहा था उनके मम्मी पापा भी शोकग्रस्त ही दिखे। कुण्ठा के कारण उन लोगों ने अपने किसी रिश्तेदार को बेटी के जन्म की सूचना तक नहीं दी।जबकि वो उनकी पहली संतान थी।
थोड़ी देर अस्पताल में रूकने के बाद मैं आज के इस सभ्य समाज की मानसिकता को समझने की कोशिश करता हुआ वापस घर लौट आया।
◆ सुधीर श्रीवास्तव