जहाँजेब की रिपोर्ट
श्री जहांजेब की वर्ष 2012 की रिपोर्ट। कटिहार जिले के मनिहारी प्रखंड निवासी सदानंद पॉल न सिर्फ शिक्षित हैं, बल्कि सूचना का अधिकार के तहत लोक सरोकारों से जुड़ी जानकारियों को भी लगातार हासिल कर रहे हैं।
सदानंद पॉल शिक्षा तथा जन अधिकार प्रेमी हैं। लोक गाथा गोपी चंद पर भारत सरकार से फेलोशिप भी प्राप्त कर चुके हैं। जनहित को लेकर सरजमीन पर आई आरटीआइ एक्ट के बाद यह लगातार सरकारी कामकाजों की जड़ को खंगालने और लोगों तक इसे पहुंचाने में लगे हैं। बीपीएससी लोक सूचना पदाधिकारी से 53वीं व 55वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा को लेकर भी इन्होंने सूचनाएं हासिल की है।
सबसे बड़ी बात यह है कि प्रस्तावित बिहार गीत को लेकर इन्होंने सरकार से जवाब-तलब किया है। कहा है कि श्री सत्य नारायण के द्वारा लिखित बिहार गीत उनके द्वारा प्रेषित राज्य गीत से मेल खाता है। उन्होंने इसे लेकर कई जानकारियां भी मांगी हैं।
अधिकार को जुनून बनाने वाले श्री पॉल ने यूजीसी की नेट परीक्षा भी पास की है। वर्तमान में हाई स्कूल में नियोजित शिक्षक हैं। कई सूचनाओं में विलंब होने पर द्वितीय अपील भी दायर की है। इनमें से कुछ का निपटारा हुआ है, लेकिन राष्ट्रपति सचिवालय, वित्त मंत्रालय, भारत निर्वाचन आयोग के स्तर पर कई सूचनाएं अब भी लंबित हैं। लंबित मामलों में मतदान कर्मियों की असुविधा तथा रुपये के प्रतीक के कॉपीराइट का मामला शामिल है।
इन्होंने बिहार दिवस पर खर्च हुए पैसे की जानकारी भी ली है। 2010 तथा 2011 के बिहार दिवस के लिए स्वीकृत राशि चार करोड़ थी, जबकि इस मद में 2010 में 216.31 लाख तथा 2011 में 284.67 लाख रुपये खर्च हुए हैं। इसी हथियार से उन्होंने बिहार के एक शिक्षक को राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग से बकाया वेतन और पीएफ की राशि का भुगतान भी कराया है। कुल मिलाकर सूचना का अधिकार को जुनून बनाकर सरकारी सूचनाओं को जनजन तक पहुंचाने में जुटे सदानंद पॉल जिले में आरटीआई के ध्वजवाहक बने हुए हैं।
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श्री पी. के. ओझा की रिपोर्ट) से- सदानंद पॉल यानी आरटीआई को हथियार बना लड़ रहे जन अधिकार की जंग । कटिहार के मनिहारी प्रखंडवासी सह पेशे से शिक्षक सदानंद पाल की पहचान पूरे जिले में एक आरटीआई कार्यकर्ता के रुप में भी है। सूचना के अधिकार को ढाल बना वे जन अधिकार की रक्षा की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहे हैं। अब तक श्री पाल तेरह हजार से अधिक सूचनाओं की मांग विभिन्न सरकारों, विभागों व संस्थाओं से कर चुके हैं। उनके इस मुहिम के चलते जनहित से जुड़ी कई योजनाओं की हेराफेरी भी उजागर हो चुकी है और इन मामलों के दोषी कार्रवाई के भागी भी हुए हैं। इतना ही नहीं कई मामलों में लोग उन लाभों से लाभान्वित हुए हैं, जिनकी भनक तक उनको नहीं थी।
एक साधारण परिवार में पले-बढ़े श्री पाल शुरु से ही समाज के लिए कुछ करने का जज्बा रखते थे। इसी के फलाफल सूचना के अधिकार लागू होने के बाद उन्होंने इस अधिकार का इस्तेमाल आम लोगों के हित में करने का निर्णय लिया। फिलवक्त वे हिन्दी विषय के प्लस टू
शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। बतौर श्री पाल जम्मू कश्मीर को छोडकर देश के सभी राज्यों से आरटीआई के माध्यम से सूचना की मांग कर चुके हैं। केंद्रीय सूचना आयोग सहित देश के अन्य राज्यों के सूचना आयोग में भी कई मामला उनके स्तर तक दर्ज कराया गया। इसमें कई मामलों में उन्हें जीत भी मिली। उनके इस अभियान के चलते कुछ वर्ष पूर्व बीपीएससी पटना को अपना एक निर्णय बदलना पड़ा था। बिहार के नियोजित शिक्षकों को अध्ययन अवकाश दिलाने में भी उनकी अहम भूमिका रही। केरल सरकार ने नारियल सुरक्षा पर नीति बनाई। गोवा सरकार ने फुटबॉल क्लब को पंजीकृत किया।इस तरह कई उपलब्धि भी उन्हें मिली।
स्थानीय स्तर पर भी कई मामलों को पटल पर लाने में उनकी अहम भूमिका रही। शिक्षक नियोजन को लेकर अमदाबाद प्रखंड में कई गड़बड़ी का खुलासा भी उन्होंने किया। वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के हाथों सम्मानित भी हो चुके हैं। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् से भी उन्हें सम्मान मिल चुका है। राष्ट्रीय कविता अवार्ड 1994 में राष्ट्रपति से भी पुरस्कार मिला है। सदानन्द पाल एमए के अलावा फेलो, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार से हैं । वे यूजीसी से नेट होल्डर भी हैं तथा फोर्ड फाउन्डेशन इंटरनेशनल फेलोशिप, यूएसए में फाइनलिस्ट भी हैं। आरटीआई के अलावा सदानन्द पाल ने कई रिसर्च सहित अन्य कई उपलब्धियॉ हासिल की हैं ।