ठेस से मनमानी तक
रेडियो नाटक ‘ठेस’ सुन रहा हूँ…… कहानी तो पढ़ा ही था ! रेणु जी की कहानी ‘ठेस’ पर आधारित है । ठेस ने सिरचन जैसे स्वाभिमानी कलाकार को जन्म दिया है । हाँ, सिरचन चिक, सीतलपाती आदि बनाते हैं! वह पैसे के लिए काम नहीं करता है, वह प्रेम और खाने के लिए कार्य करता है।
वह मुँहजोर है, पर कामचोर नहीं!
किन्तु हरकोई सिरचन के स्वाभिमानी कृत्य को जानते हुए भी उन्हें आखिर में ‘ठेस’ पहुंचा ही देता है! मानू की विदाई से पहले ही…..
जय सिरचन, जय रेणु !
जब से महिलाओं को 50% आरक्षण मिला है, पुरुषों की दबंगई घटी है । यह महिलाओं के सामाजिक स्तर में सुधार के लिए सर्वोत्तम पहल है ।
लेकिन इससे उनमें धीरे-धीरे मनमानी भी गृहीत करते जा रही है!
क्या इसे रोकने के लिए और पुरुषों की बात सुने जाने के लिए सरकारी तौर पर राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर ‘पुरुष आयोग’ गठित होंगे ?
क्योंकि किसी भी पक्ष के प्रति प्रताड़ना मानवाधिकार का प्रत्यक्ष उल्लंघन है!