बाल कविता
धारण करती धरती माता।
जन -जन तेरी महिमा गाता।।
अन्न,शाक, फल हमको देती।
कभी न हमसे कुछ भी लेती।
दूध, वसन, घर सभी मिठाई।
सब धरती माता से पाई।।
सहती सबका भार बराबर।
हम धरती पर सदा निछावर।।
कोई गर्त बनाता गहरा।
दर्द न सुनता मानव बहरा।।
मौन धरे वह सहती भारी।
नित बढ़ जाते पशु,नर,नारी।।
सागर में जल खारी रहता।
नदियों से मीठा जल बहता।।
गिरि पयधर से बहता सोता।
पीता, भू पर फसलें बोता।।
हर किसान को धरती प्यारी।
बने महल ,घर, अटा,अटारी।।
मूढ़ मनुज जल दोहन करता।
रोता तब जब प्यासा मरता।।
कहते टिकी शेष फन धरती।
रात- दिवस जनरक्षा करती।।
‘शुभम’मान उपकार धरा का।
नहीं करे तू धूम – धड़ाका।।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम’