लघुकथा

”अब और नहीं!”

झमाझम बारिश हो रही थी. हवा भी तेज-तेज चल रही थी. कबूतर के एक छोटे-से पंख से रसोईघर का गवाक्ष खुल गया, शायद इम्यूनिटी (चिटकनी) कमजोर थी. नवीन की स्मृतियों का गवाक्ष भी खुल गया था.

इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) तो नवीन की भी कोई खास मजबूत नहीं थी. तभी तो कोरोना का खौफ़नाक मंजर भी उसके नशे की लत को कमजोर नहीं कर सका. पहले तो घर में पड़ी बोतलों से काम चलता रहा, फिर आया उदासी और मायूसी का दौर.

”इस लॉकडाउन ने हमें निक्कमा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के!” उसने खुद से कहा.

”बेटा, इस कोरोना को कमजोर मत समझना. इसमें दृढ़ता दिखानी होगी, मदिरा की मस्ती को छोड़कर मन की मस्ती में रहना सीख लो, इम्यूनिटी बनी रहेगी.” डॉक्टर पिता ने उसकी उदासी और मायूसी को कमजोर करने की कोशिश की.

”पिताजी भी जाने कहां-कहां से रोज नए शगूफ़े ढूंढ लाते हैं?” नवीन को नवीनता से ही चिढ़ हो गई थी.

कॉलोनी के निवासियों ने भी उसके नशे पर ऐतराज किया, ”अब और नहीं!” कहकर भी वह जो भी देशी-विदेशी मिले, लेने पर अड़ा रहा. कुछ नहीं होगा, उसकी रट चलती रही.

लॉकडाउन में तनिक ढील ने शराब की दुकानें खोल दीं और नवीन भी बाकी सबकी तरह सोशल डिस्टैंस को धत्ता बताता हुआ लाइन में लगकर बहुत कुछ झटक आया था.

आखिर इम्यूनिटी का कमजोर गवाक्ष खोलकर कोरोना ने पंख पसार दिए. नवीन की सांस फूलने लगी. वह पॉजीटिव हो गया. यह पॉजीटिविटी नवीन को ही नहीं हुई थी. बकरे की मां कब तक खैर मनाती! नवीन की मां को भी कोरोना की पॉजीटिविटी ने घेर लिया. फिर वही पॉजीटिविटी उसके पूरे परिवार की इम्यूनिटी को लील गई. कोई अस्पताल में तो कोई घर में क्वारंटीन पर था.

परिवार ही क्यों पूरी कॉलोनी क्वारंटीन में घिर गई. 24 घंटे कोरोना वॉरियर्स पुलिस, गॉर्ड और सफाई कर्मचारी चौकस और मुस्तैद! घरेलू सहायक, कार क्लीनर, ड्राइवर बेरोजगार! नशे का कोढ़ अब नासूर बन गया था.

कोरोना ने सांस पर पहरा, इम्यूनिटी पर पहरा, सम्मान पर पहरा लगा दिया था, नवीन ने परिवार-देश-समाज के लिए नासूर बने नशे पर पहरा लगाने के लिए ”अब और नहीं!” का इरादा पक्का कर लिया था.

उसके ”अब और नहीं!” कॉलम ने नशे की समस्त प्रत्यक्ष-परोक्ष बुराइयों को उजागर कर दिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “”अब और नहीं!”

  • लीला तिवानी

    ड्रग्स लेने वालों के नशे का दुर्दांत हाल तो हम देख ही रहे हैं. नशे के नुकसानों को देखते हुए अनेक महान विचारक हमेशा से नशे के खिलाफ रहे, उन्होंने सादा जीवन और उच्च विचारों को अपने जीवन में अपनाकर लोगों को अहिंसा का संदेश दिया। हमारा कर्तव्य है कि हम ऐसे विचारकों के पदचिन्हों पर चलकर समाज को नई दिशा में लेकर जाएं। इसके लिए नशे को हमेशा के लिए त्यागना होगा। इसी में अपना भी हित है और समाज-देश का भी.

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