नेताओं के दंश…
नेताओं के दंश, बड़े विध्वंसक हैं.
आएंगे बनके रक्षक, पर भक्षक हैं.
इनकी सिर्फ कथनी-करनी ही नहीं,
ये मानव हैं, इसपर भी गहरा शक है.
जांचे-परखें, इनकी बातों को पहले,
स्वयं करें मूल्यांकन, अति आवश्यक है.
स्वार्थ स्वयं का निहित है इनके धरने में,
आपके सुख दुःख से न इनको मतलब है.
इनको नहीं किसानों की कोई चिंता,
इनको अपनी मंडी उजड़ने का डर है.
न्यूनतम में जो बंधकर रह गए यदि,
अधिकतम पाना कदाचित असंभव है.
‘श्वेत’ सहे वर्षों मंडियों के अत्याचार,
अब इनको अपनी आज़ादी का हक़ है.