गज़ल

गीतिका/ग़ज़ल

फिर वही क़िस्सा सुनाना तो चाहिए – मुहम्मद आसिफ अली

फिर वही क़िस्सा सुनाना तो चाहिए फिर वही सपना सजाना तो चाहिए यूँ मशक़्क़त इश्क़ में करनी चाहिए जाम नज़रों

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गीतिका/ग़ज़ल

गँवाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी – मुहम्मद आसिफ अली

गँवाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी बुढ़ापे के लिए मुझको जवानी चाहिए थी समंदर भी यहाँ तूफ़ान से डरता नहीं

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गीतिका/ग़ज़ल

नेताओं के दंश…

नेताओं के दंश, बड़े विध्वंसक हैं. आएंगे बनके रक्षक, पर भक्षक हैं. इनकी सिर्फ कथनी-करनी ही नहीं, ये मानव हैं,

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