गीतिका/ग़ज़ल

नेह लिख कुएँ में डाल

जिंदगी जिंदगी नही मेरी मगर तुम्हें क्यो मलाल दूँ
खुश रहो मैं भी खुश हूँ बोल कुछ लम्हें खुशहाल दूँ

अगर लौटकर आ जाते लोग ऊपर से धरती पर
तो मन्नत के धागे बांध नेह लिख कुँए में डाल दूँ

एक तुम जिसने मार दिया एक वो थी जो जान है
लोग एक जैसे नही होते अब और क्या सवाल दूँ

कही मेरे अपनों की तुमको बद्दुआ न लग जाये
वरना दुआओ में हो तुम वहाँ से भी निकाल दूँ

पागल था तुम्हारे झूठ को भी दिल से लगा बैठा
वरना तुम्हें दूर कर बेबफा की पदवी कमाल दूँ

अगर मुमकिन होता तो एक लम्हा भी न सोचता
अपनी उम्र का तुम्हारी उम्र को हर लम्हा साल दूँ

पता नही क्या था तुमको जो चन्द दिन भी न चला
मैं आज भी गिरफ्त में हूँ कैसे जीवन को ताल दूँ

झूठ क्यो बोलती हो शिव जी का नाम ले खुश रहूँ
जन्मदिन ही तो था सोचा क्यों न तुझको काल दूँ

खुश रहो तुम, तुम्हारे अपने, औऱ क्या दे ऋषभ
बस ये ही दुआ है जो हर रोज रहके भी बेहाल दूँ

— ऋषभ तोमर ‘राज’

ऋषभ तोमर

अम्बाह मुरैना