स्वास्थ्य

उल्टी की सरल चिकित्सा

उल्टी (या वमन) कई कारणों से हो सकती है। यहाँ हम ऐसी उल्टी की बात कर रहे हैं जो भोजन की गड़बड़ी के कारण होती है। जब हमारा आमाशय ऐसी वस्तुओं से भर जाता है, जिनको पचाना कठिन हो जाता है और पाचन प्रणाली रुक जाती है, तो हमारा शरीर उन वस्तुओं को मुँह के रास्ते वापस फेंकने लगता है। कई बार जहरीली वस्तु खा लेने पर भी उल्टियाँ होती हैं।

इन दोनों प्रकार की उल्टियों की चिकित्सा एक ही है। वह यह है कि सबसे पहले सभी प्रकार का खाना-पीना बन्द कर दिया जाये और यदि उल्टी आ रही हो, तो कर ली जाये। यदि ऐसा लगता हो कि उल्टी आ रही है परन्तु होती नहीं हो, तो हमें स्वयं दो-तीन गिलास गुनगुना या साधारण जल पीकर वमन या कुंजल कर लेना चाहिए। कुंजल करने से उल्टी में तत्काल आराम मिलता है। कुंजल क्रिया की चर्चा पीछे की जा चुकी है।

प्रत्येक बार उल्टी होने या करने के बाद रोगी को एक या दो घूँट सादा पानी पिला देना चाहिए और यदि मौसम अधिक ठंडा न हो, तो सिर या माथे को ठंडे पानी से तर कर देना चाहिए। इसके साथ ही रोगी को पूरी तरह आराम करना चाहिए। ऐसा करने से एक दिन में ही रोगी को पर्याप्त आराम मिल जाता है और उल्टी की शिकायत दूर हो जाती है। यदि उल्टी के साथ दस्त भी हों, तो पेड़ू पर मिट्टी या ठंडे पानी की पट्टी रखनी चाहिए। किसी भी हालत में पूरा आराम मिले बिना रोगी को कुछ भी खाने को नहीं देना चाहिए। जब उल्टी बन्द हो जायें और रोगी को भूख लगे, तो प्रारम्भ में बहुत हल्का भोजन जैसे दलिया या उबली सब्जी देनी चाहिए।

यदि अम्लता (एसिडिटी) या पित्त की खराबी के कारण उल्टी आ रही हों, तो पहले उसका इलाज करना चाहिए। अम्लता तथा पित्त की खराबी से बचने और उसको दूर करने के लिए सभी प्रकार की गर्म वस्तुएँ और मिर्च-मसाले आदि तत्काल त्याग देने चाहिए और केवल ठंडी वस्तुएँ ही कम मात्रा में खानी चाहिए। एसिडिटी की चिकित्सा में काफी समय और धैर्य की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसी प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। अनुलोम-विलोम तथा नाड़ीशोधन प्राणायाम इसमें बहुत लाभदायक होते हैं। एसिडिटी की विस्तृत चर्चा आगे अलग से की जाएगी।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com