ग़ज़ल
ख़ूं से अपने वतन को सजाते चलो।
ख़ूबसूरत इसे तुम बनाते चलो।
ग़म जहाँ हो खुशी तुम लुटाते चलो।
जश्न हर ज़िन्दगी का मनाते चलो।
जीत का जश्न खुलकर मनाते चलो।
पस्तियों के निशां सब मिटाते चलो।
हमसफर अब उसे भी बनाते चलो।
राह में जो गिरा है उठाते चलो।
बस्तियाँ प्यार की तुम बसाते चलो।
दर्दो गम सादगी से भुलाते चलो।
देन क़ुदरत की तुझको मिली ख़ूबरू,
काम सब मुस्करा कर बनाते चलो।
गर थमा ही रहे तो यक़ीनन सड़े,
प्यार दरिया है उसको बहाते चलो।
— हमीद कानपुरी