हलधर
‘श्री कृष्णा’ सीरियल में श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को भी दिखाया जा रहा है. बलराम जी अपने नाम के अनुरूप बल में भगवान राम के समान बलशाली हैं. उन्हें हलधर भी कहा जाता है, क्योंकि उनका प्रमुख शस्त्र हल है. वे हलधारी हैं.
कभी-कभी मन में आता था, भला हल भी कोई शस्त्र हो सकता है! हल तो कृषि का उपकरण मात्र है, लेकिन सीरियल में बलराम का हल तो कमाल कर दिखाता है! संकेत मात्र से अपनी लंबाई बढ़ाकर दुश्मन को दफे कर पुनः अपने वास्तविक आकार में वापिस आ जाता है. संकेत मात्र से धरती को चीर देता है और सारे दुश्मन उसमें समा जाते हैं.
यह तो बात हुई सीरियल के हलधर की. हमारे ब्लॉग सनम तेरी कसम! (लघुकथा) में सुदर्शन खन्ना का कामेंट पढ़ने से पहले हमें पता ही नहीं था, कि एक वास्तविक हलधर भी हैं, जो सीरियल के हलधर से कहीं सौ कदम आगे हैं.
इन हलधर जी का कहना है- ”साहिब, दिल्ली आने तक के पैसे नहीं है कृपया पुरस्कार डाक से भिजवा दें.”
पुरस्कार भी कोई ऐसा-वैसा नहीं था, राष्ट्रपति ने उन्हें साहित्य के लिये पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने का ऐलान किया था. उसी के जवाब में ओड़ीसा के कोसली भाषा के कवि एवम लेखक हलधर नाग ने पुरस्कार डाक से भिजवाने का यह आवेदन किया था.
हलधर नाग ‘लोककवि रत्न’ के नाम से विख्यात-प्रख्यात हैं. उनके बारे में विशेष बात यह है कि उन्हें अपनी लिखी सारी कविताएँ और 20 महाकाव्य कण्ठस्थ हैं.
हलधर का जन्म 1950 में ओड़ीसा के बरगढ़ में एक गरीब परिवार में हुआ था. जब वे 10 वर्ष के थे तभी उनके माता-पिता की मृत्यु के साथ हलधर का संघर्ष शुरू हो गया. तब उन्हें मजबूरी में तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा. घर की अत्यन्त विपन्न स्थिति के कारण मिठाई की दुकान में बर्तन धोने पड़े. दो साल के बाद गाँव के सरपंच ने हलधर को पास ही के एक स्कूल में खाना पकाने के लिए नियुक्त कर लिया, जहां उन्होंने 16 वर्ष तक काम किया. जब उन्हें लगा कि उनके गाँव में बहुत सारे विद्यालय खुल रहे हैं तो उन्होंने एक बैंक से सम्पर्क किया और स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया.
हलधर समाज, धर्म, मान्यताओं और परिवर्तन जैसे विषयों पर लिखते हैं. उनका कहना है कि कविता समाज के लोगों तक सन्देश पहुँचाने का सबसे अच्छा तरीका है. सम्बलपुर विश्वविद्यालय में अब उनकी रचनाओं का संग्रह ‘हलधर ग्रंथावली-2’ को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है.
विश्वास नहीं होता न! तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ने पर विवश अनाथ की जिंदगी जीने वाले हलधर की पुस्तक को सम्बलपुर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है! हम किताबों में प्रकृति को चुनते हैं, पद्मश्री हलधर नाग ने प्रकृति से किताबें चुनी हैं.
हलधर ने 1995 के आसपास स्थानीय उड़िया भाषा में ”राम-शबरी ” जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख-लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया. भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते-करते वो इतने लोकप्रिय हो गये, कि उन्हें इतने बड़े सम्मान पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया.
हलधर ने कभी किसी भी तरह का जूता या चप्पल नहीं पहना है. वे बस एक धोती और बनियान पहनते हैं. वो कहते हैं कि इन कपड़ों में वो अच्छा और खुला महसूस करते हैं.
”सचमुच ओड़ीसा के कोसली भाषा के कवि एवं लेखक हलधर नाग का कोई सानी नहीं, वे पद्मश्री से भी कहीं ऊपर हैं.” ‘श्री कृष्णा’ सीरियल के हलधर बुलंद आवाज से कह रहे थे.
सुदर्शन भाई, इतनी बेमिसाल प्रतिक्रियाएं लिखने के लिए बहुत-बहुत आभार. सनम तेरी कसम! (लघुकथा) में प्रकाशित आपकी प्रतिक्रिया पर आधारित एक लघुकथा ‘सरल उपाय’ पहले भी प्रकाशित हो चुकी है. यह दूसरी लघुकथा है. अद्भुत है पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित ओड़ीसा के कोसली भाषा के कवि एवम लेखक हलधर नाग की जीवन-गाथा. ”हलधर ने 1995 के आसपास स्थानीय उड़िया भाषा में ”राम-शबरी ” जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख-लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया. भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते-करते वो इतने लोकप्रिय हो गये, कि उन्हें इतने बड़े सम्मान पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया.”