सामाजिक

ज्ञान आधारित समाज

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।

श्रीमद भगवत गीता के चौथे अध्याय में लिखा गया 34 वां श्लोक श्लोक। शिक्षा और ज्ञान के प्रति कहता है कि। शिक्षा और ज्ञान उसी को मिलता है जिसमें जिज्ञासा हो। सम्मान और विनय शीलता से सवाल पूछन से ज्ञान मिलता है। जो जानकार है वह कोई भी बात तभी बताएंगे जब आप सवाल करेंगे। किताबों में लिखी या सुनी बातों के तर्क पर चलना जरूरी है। जो शास्त्रों में लिखा है। और जो गुरु से सीखा है। और जो अनुभव रहा है इन तीनों में सही तालमेल से ज्ञान मिलता है।

हर व्यक्ति के जीवन की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होती है। भारतीय संस्कृति सिखाती है “मातृ देवो भव। पितृ देवो भव” अर्थात माता-पिता ही भगवान का स्वरूप है। जन्मदाता है। स्वयं परमात्मा है। माता पिता ही प्रथम गुरु है जो अपनी संतान का पालन पोषण कर उसे संस्कार व उचित मार्ग दर्शाते हैं। माता पिता अपनी संतान की उज्जवल भविष्य के लिए उसी शिक्षित करते है। शिक्षा के साथ-साथ संस्कार देना भी अति आवश्यक है। उससे वह अपने सर्वोच्च प्रवृत्तियों का पूर्ण विकास करके अपना और समाज दोनों का कल्याण करता है। संस्कार मनुष्य को सिर्फ इसी जीवन में पवित्र नहीं करता। बल्कि उसकी पारलौकिक जीवन को भी पवित्र बनाता है। अपने माता-पिता की निस्वार्थ सेवा करना ही प्रत्येक मनुष्य का धर्म है। व यही सर्वप्रथम शिक्षा है।

कलयुग में हर मनुष्य ही स्वार्थी बनता जा रहा है। क्योंकि यहां कमी है तो केवल उचित ज्ञान की। राष्ट्र और नागरिक के सर्वांगीण विकास के लिए ज्ञान आधारित समाज की आवश्यकता है। एक अच्छा नागरिक बनना ही सर्वप्रथम कर्तव्य है। उचित ज्ञान हमें जीवन की हर कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।

मनुष्य स्वयं एक सामाजिक प्राणी है। समाज और मनुष्य दोनों एक दूसरे के पूरक है के पूरक है। पर इसमें सबसे आवश्यक है कि ज्ञान आधारित समाज हो। उचित ज्ञान होगा तभी उचित निर्णय भी लिया जा सकता है। मनुष्य को उसकी आवश्यकता के लिए समाज और समाज को उसके अस्तित्व के लिए मनुष्य की आवश्यकता होती है। समाज का कार्य है कि एक दूसरे के सुख दुख में काम आना। यदि समाज की सोच बड़ी होगी तो हर कार्य सफल होगा हर मनुष्य को उचित न्याय अवश्य मिलेगा।

घर से बाहर कदम पढ़ते ही एक मनुष्य समाज की छाया में बंध जाता है। मनुष्य वही बनता है जो उसका समाज का नजरिया उसे दिखाता है। इसलिए समाज भी हमारे जीवन में मुख्य किरदार निभाता है। यदि हर जगह पर पाबंदी होगी तो मनुष्य उन सफलता की ऊंचाइयों तक कैसे पहुंचेगा। आज भी कहीं गांव है जहां पर लोगों को ज्यादा शिक्षित नहीं किया जाता। लड़कियों का तो घर से बाहर प्रवेश करना भी अनिवार्य है। ऐसे समाज में बंधी लड़कियों के सपने मन में ही दब जाते हैं। ऐसी बात नहीं कि उनमें काबिलियत नहीं है परंतु उन्हें उनकी गुणों से रूबरू हु नहीं कराया जाता। कोई प्रोत्साहित नहीं करता। उन्हें घर के कामों में ही पूरी तरह से ढाल दिया जाता है। क्योंकि समाज नहीं चाहता, लोग नहीं चाहते कि लड़कियां शिक्षित हो। बड़े ही दुख की बात है कि उनका जीवन केवल चुले व चौको में व्यतीत हो जाता है। उनका यह मानना है कि यदि लड़कियां हर काम करने लगे तो उनकी इज्जत पर आंच आ जाएगी। बेटी और बेटों में फर्क करना भी यही सिखाती है। और यदि कोई इस बात को स्वीकार ना करें व अपनी बेटियों को पडाने की उम्मीद रखे। तो समाज उन्हें दंड देता है। यह कहां का न्याय है कि खुद भी प्रयत्न ना करो। और जो प्रयत्न करना चाहता हो उसे भी मुंह के बल गिरा दो।

मैंने ज्ञान किसी को बांटा नहीं, फिर ग्यानी कहलाने से क्या फ़ायदा ॥

यह संत कबीर दास जी के दोहे बड़ी ही खूबसूरती से मनुष्य के ज्ञान के प्रति कहते कहते हैं। कि हमें ज्ञानी कहलाने का अधिकार तभी है जब है जब हम अपना ज्ञान सभी को बांटे। वरना ऐसे ज्ञान का क्या फायदा जिसका हम अपने जीवन में उपयोग ही ना ना करें। इसीलिए हर समाज को शिक्षित व ज्ञानी होना अति आवश्यक है। तभी वह अपना और सर्वस्व समाज का कल्याण कर सकता है। और इतिहास रच सकता है। आज भी कहीं गांव है जहां पर किसी भी प्रकार का हादसा हो तो न्याय समाज व पंचायत करती है। ऐसी स्थिति में में कहीं लोग होते हैं। जो अपने निजी दुश्मनी निभाते हैं। वह निर्दोष को भी सजा सुनाते हैं कोई उनके फैसले के विरुद्ध भी नहीं जा सकता। क्योंकि पंच परमेश्वर होता है। और उनका निर्णय प्रथम माना जाता है। परंतु जब समाज में ही ज्ञान ना हो जब हर कोई अपना निजी स्वार्थ पूर्ण करने हेतु निर्दोष को सजा दे फिर ऐसे समाज का क्या लाभ।

शिक्षा हर मनुष्य का पहला व महत्वपूर्ण अधिकार है। यह वह हथियार है जो हमारे जीवन की हर परिस्थिति में हमारा सारथी बनता है। हमें हर कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। वह हमारे विचारों में परिवर्तन लाता है। यदि हमारे पास धन व आभूषण हो तो मन में सदैव डर और चिंता रहती है। कि कोई इसे चुरा ना दे। परंतु यदि हमारे पास शिक्षा और ज्ञान का भंडार हो। उसे कोई नहीं चुरा सकता। वह सदैव रहेगा उसे जितना बाठोगे वह उतना ही बढ़ेगा।

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा