भाई भरोसे लाल का पुस्तक प्रेम
मेरे मित्र भाई भरोसे लाल ने मुझे फोन पर सूचना दी कि अब वे बुढ़ापे में अच्छी पुस्तकें पढ़ कर अपना समय बिताएंगे। और इस लिए वे लाइब्रेरी यानि पुस्तकालय से बहुत साडी किताबे ले आये हैं। मुझे भी अच्छा लगा कि चलो यह तो बहुत अच्छा हुआ। जैसे कोई फिल्म देख कर आये तो वह फिल्म की कहानी किसी दुसरे को सुनाने केलिए बहुत उतावला रहता है। चाहे कोई सुनना चाहे या न सुनना चाहे पर वह जबरदस्ती सुनने पर तुला रहता है। यदि बीच में कोई और बात शुरू हो जाये या उसे मना कर दो फिर भी वह कुछ देर बाद फिर से सुनना शुरू कर देता है कि किसी तरह कोई उस के द्वारा वह कहानी सुन ही लें। ऐसे ही मुझे उन का किताबें पढ़ना इस लिए ही अच्छा लगा कि वे खुद पढ़ कर उन किताबों का सारांश मुझे अवश्य बताएंगे नहीं तो उन्हें यह सब बिना सुनाये पचेगा नहीं और उन का ग्यानी या विद्वान् होने का रौब भी मेरे ऊपर बना रहेगा। ‘मुझे इस लिए भी अच्छा लगा चलो अब वे मुझे अपने साथ ताश खेलने की जिद्द नहीं करेंगे और बिना बात की बातों पर बहस कर के मेरा और अपना समय व्यर्थ यानि बेकार नहीं करेंगे। और सब से बड़ी बात तो यह लगी की अब उन के भाभी जी के बीच समय समय पर होने वाली राष्ट्रीय नौक झौंक में मुझे दो तरफा या एक तरफा जज की भूमिका नहीं निभानी पड़ेगी और जब उन के यहां जाऊंगा तो उन की महाभारत श्री कृष्ण जी बन कर निपटाने के बजाय मुझे अब शरणम गच्छ पार्थ की भूमिका में रहना पड़ेगा। और पहले तो चाहे मुझे समय हो या न हो पर फिर भी उन की लम्बी २ बहस के बाद ही चाय मिलती थी पर अब ऐसा शायद न हो क्योंकि अब इस की शायद गुंजायस ही न रहे और शांतिके साथ बन जाएगी और पि भी उसी तरह से जाएगी।
दूसरा मुझे यह लाभ भी होगा कि मैं ठहरा आलसी आदमी क्योंकि मुझे शुरू से ही किताबे पढ़ने में आलस आ कर नींद आ जाती थी। पर अब मुझे बिन पढ़े ही बहुत सारा ज्ञान भाई भरोसे लाल के किताबें पढ़ने पर आसानी से मिल जाया करेगा। क्योंकि यहां विद्या श्रुति परम्परा से ली जाती रही है इस लिए सुन सुन कर मैं ज्ञानवान हो जाऊंगा क्यों की जब वे किताब पढ़ेंगे तो मुझेभी सुनाएंगे जरूर नहीं तो उन के पेट में दर्द हो जायेगा। इस कारण मुझे उन की किताबें पढ़ने की इस घोषणा से बहुत ही खुशी हुई चाहे उन के घर वालों को हुई हो या नहीं हुई हो पर मुझे तो बहुत हुई।
मैं इसी ख़ुशी में फूला फूला मैं उन के घर मिलने और बधाई देने पहुँच गया। मैंने वहां जा क्र देखा मेरे मित्र भाई भरोसे लाल नाक पर आधे वाला चश्मा चढ़ाये बड़े दार्शनिक मुद्रा बनाये ड्राइंग रूम एक कोने में बैठे और उनके आसपास कुछ किताबे रखी थीं पर वे सब की सब बंद थीं। वे उन्हें पढ़ नहीं रहे थे बस निहार भर रहे थे। मुझे देख कर वे बहुत प्रश्न हए और अपने कितान पढ़ने के निर्णय की स्वयं ही प्रशंसा करने लगे। मैं काफी देर तक उन के द्वारा अपने ही गुणगान को सुनता रहा। पर बीच बीच में मैं चुपके से किताबों की ओर देख लेता और कोशिश करता कि उन पुस्तकों के शीर्षक क्या है परन्तु वे मुझे उन की तरफ देखने का मौका ही नहीं दे रहे थे।
परन्तु भगवान का धन्यवाद रहा कि इस बीच बाहर अखबार वाले होकर ने उन की दरवाजे की घंटी बजा दी और वे बाहर अखबार का बिल देने चले गए और इस बिच उन की काफी देर तक बाकि खुले पैसे के लिए राष्ट्रिय बहस होती रहे परंति इस बीच मुझे उन पुस्तकों के शीर्षक देखने का अवसर मिल गया मैंने देखा कि उन पुस्तकों मे मनोविज्ञान सेसंबंधित थी यानि मनोविज्ञान की ही थी। परन्तु मैं उन्हें बचपन से ही जानता हूँ और उन के साथ ही पढ़ा भी हूँ तो मुझे पता है कि उन का मनोविज्ञान जैसी चीज से कभी कोई संबंध नहीं रहा।
जब वे बाहर उस होकर से निपट कर आये तो मैंने स्वभाविक ही पूछ लिया कि भाई आप को यह मनोविज्ञान पढ़ने का शौक कैसे लग गया। और आप मनोविज्ञान पढ़ कर अब किस का मनोविज्ञान जानना चाहते हैं।अब तो आप भाभी जी की सब बात और भाभी जी आपकी सब बातें जननेलगे होंगे ही परन्तु मेरी इस बात को सुन कर वे बोले कि आप की यह बात अर्ध सत्य है यानि आपकी आधी बात ही बात ही ठीक है मैं उन की बात समझा नहीं सका और असमनंजस में पद गया कि अभी तो उन्होंने मनोविज्ञान की पुस्तकें पढ़नी बी शुरू नहीं की हैं परन्तु बातें वे अभी से मनोविज्ञान कीकरणे लगे हैं। मेरे असमंजस को शायद वे समझ गए तोउन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हए मेरी भूल को अपनी तरफ से ही सुधरते हए कहा कि आप की बात आधी ही सच है पूरी सच नहीं है . तो मैंने उन की ओर कौतूहल पूर्वक देखा तो उन्होंने बताया कि यह इस लिए आधी सच है कि तुम्हारी भाभी तो मेरी सब बातें आराम से जान जातीं हैं पर मैं उन के मन की एक भी बात नहीं जान पता हूँ उन्हें पता नहींमेरे मन की सब बातें पहले ही पता चल जातीं हैं। जब मैं तुम्हारे पास आने कीबसोचता हूँऔर तैयार होने लगता हूँ तो वे पहलेसे बता देतीं हैं दोस्त के पास जा रहे होंगे। उन्हें पता नहीं कैसे पता चल जाता है कि मैं आप से मिलने हूँ। परन्तु उन का कब खान का प्रोग्राम बन जाये मुझे पता ही नहीं चलता है। तो मुझे भी उन के मन की बात समझने के लिए मनोविज्ञान पढ़ना पड़रहा है। ताकि मैं भी उन के मन की बात जान सकूँ।
मेरी समझ में गया कि भाई भाई भरोसे लाल का मनोविज्ञान पढ़ने का कारण क्या है कि वे भी भाभी जी के मन कीबात पहले से ही समझ लेना चाहते हैं परन्तु मुझे उन की यह बात सुनकर बहुत हंसी भी आई भला आज तककोई अपनी पत्नी के मन की बात को ठीक से समझ पाया है क्या कोई महिला का मनोवैगान आज तक समझ सका है मैं तो अभी तक नहीं जान सका हूँ और मैंने शास्त्रों के विषय में भी यही सुना है शायद स्त्री के मन की बात तो स्वयं स्त्री की रचना करने वाले ब्रह्मा जी भी नहीं समझ सकें और सेम भगवान भी नहीं समझ सके क्योंकि यदि भगवान शिव जी यह पता होता कि सती जी इतना बड़ा कण्डकरने वालीं हैं तो किसी भी तरह उन्हें उन के पीहर यानि मायके जाने सेरोक लेते परन्तु वे तो बेचारे भोले भंडारी थे अब उन्हें क्या पता कि उन की अर्धांग्नी जी क्या क्या कर सकतीं हियँ वे भलौं के मन की बात कैसे जान पाते क्योंकि आज तक स्त्री के मन की बात कोई नहीं जान सका तो मेरे मित्र भाई भरोसे लाल की भला क्या औकात जो वे अपनी पत्नी की बातें जान सकें चाहे वे मनोविज्ञान की कितनी ही पुस्तकें क्या ग्रंथ के ग्रंथ पढ़ लें तो भी वे अपनी केमन की बात नहीं जान सकेंगे। पर मैंने सोचा कि चलो इन का भरम भी दूर हो जाने दो मेरे मना करने से भला वे मानेंगे थोड़ी और वैसे भी पुस्तकें पढ़ना तो अच्छी बात है ही इस लिए मैंने उन्हें और प्रोत्साहित किया।
— डॉ वेद व्यथित