किसान
लिख लो तुम भी
हम पर
या कहूँ
हमारी बेबसी पर
चंद पंक्तिया
बटोर लो वाह वाही
पर बताओ
क्या इससे हमारी भूख
मिटा सकोगे ?
हमारी लाचारी को
कविता की प्लेट में सजा कर
चंद मुहावरों
और
छद्म अलंकारों का
वर्क लगा कर
मिठाई की तरह
कब तक बेचते रहोगे ?
हम किसान
तुम्हारी कविता का विषय
सदियों से बनते आए हैं
और सदियों तक
बनते रहेंगे
लेकिन
हमारी भूख और लाचारी पर
लिखने वाले तुम
कभी एक निवाला भी
दे सके हमको ?
या कभी
हल चला कर देखा है
सूरज तले ?
या कभी
हमारी बेटी की
डोली उठने से पहले
हमारी पगड़ी को
दहेज के दानव के
पैरों तले कुचलने से
बचाया है ?
जाओ रहने दो
ले जाओ
अपनी सहानुभूति का कटोरा
इन सिक्कों से
नहीं भरेगा हमारा पेट
हमें हमारे हाल पर छोड़ दो
तुम करते रहो
कागज़ काले
और हम
उगाते रहेंगे सोना
तुम अपना काम करो
और
हम अपना
—- नमिता राकेश