गजल
वो तेरे शहर गुलाम है
गुलामी ही जिसका काम है
न पूछ उसके दिल की हसरते
क्या ये रहा उसे चाहते
क्या हु आ हो जो नाकाम है
गम मे डूबी उसकी शाम है
भले शिकायतो के खत लिए
मिले भले खुलूसो मुहब्बत लिय
शिकायते उसकी आम है
आभिषेक जैन
वो तेरे शहर गुलाम है
गुलामी ही जिसका काम है
न पूछ उसके दिल की हसरते
क्या ये रहा उसे चाहते
क्या हु आ हो जो नाकाम है
गम मे डूबी उसकी शाम है
भले शिकायतो के खत लिए
मिले भले खुलूसो मुहब्बत लिय
शिकायते उसकी आम है
आभिषेक जैन