सामाजिक

नागालैंड की खिअमनीअंगन जनजाति

खिअमनीअंगन नागालैंड की एक प्रमुख जनजाति है I नागालैंड के अतिरिक्त इस समुदाय के लोग म्यांमार में भी रहते हैं I नागालैंड के पूर्वी भाग और म्यांमार के उत्तर – पश्चिमी भाग में इनकी बसावट है I व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘खिअमनीअंगन’ शब्द तीन शब्दों के योग से बना है I खियम+निउ+नगन (KHIAM+NIU+NGAN) में ‘खियम’ का अर्थ है ‘जल’, ‘निउ’ का अर्थ है महान अथवा बड़ा और ‘नगन’ का अर्थ है स्रोत I इस प्रकार खिअमनीअंगन का अर्थ है “महान जल का स्रोत अथवा नदी” I इससे विदित होता है कि खिअमनीअंगन समुदाय का किसी बड़ी नदी या गहरे जल स्रोत से निकट संबंध है अथवा ये लोग किसी बड़ी नदी के तट पर रहते रहे होंगे I इन्हें कल्यो-केनु भी कहा जाता है I इनकी उत्पत्ति के संबंध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । ब्रिटिश राज से पहले उनके इतिहास से संबंधित कोई लिखित अभिलेख उपलब्ध नहीं है। इनके पूर्वजों के बारे में जानकारी का एकमात्र स्रोत लोककथाएं और मिथक हैं जो मौखिक परंपरा में उपलब्ध हैं । वे भाषाई और सांस्कृतिक रूप से तिब्बती – बर्मी समूह से संबंधित हैं। कई अन्य नागा जनजातियों के विपरीत दूरस्थ स्थान पर रहने के कारण इस समुदाय पर लंबे समय तक ईसाई धर्म का बहुत कम प्रभाव पड़ा था। वर्ष 1947 के बाद इस समुदाय के कई लोगों ने ईसाई धर्म ग्रहण किया I नई शिक्षा प्रणाली, सामाजिक व्यवस्था, आधुनिकीकरण और ईसाई धर्म के आगमन के बाद खिअमनीअंगन के सामाजिक जीवन में भारी बदलाव आया । खिअमनीअंगन समुदाय के लोग अपना उद्भव ‘खियमनगन’ नामक स्थान पर बताते हैं। किंवदंती है कि एक बार भीषण बाढ़ आई थी। बाढ़ से बचाव के लिए लोग अधिक ऊँचाई पर चले गए और जैसे ही बाढ़ कम हुई, वे नीचे की ओर उतर आए और ‘खिमनगन’ में अपनी बस्ती बसा ली । खिमनगन में लगातार तीन पीढ़ियों तक रहने के बाद वे लोग धीरे-धीरे अलग-अलग दिशाओं में चले गए जिससे कई गाँव आबाद हो गए। एक समूह लुमोकिंग में चला गया । इसी तरह एक अन्य समूह नोखु थान्सगून में देशांतरित होकर चला गया । जनसंख्या वृद्धि के कारण इनके प्रवास का क्रम जारी रहा और आखिरकार चिंदविन नदी के उत्तरी तट तक और फिर म्यांमार से आगे खिअमनीअंगन समुदाय का देशांतरण हुआ I पारंपरिक खिअमनीअंगन गाँव में आठ महत्वपूर्ण व्यक्ति होते थे :
1.नोकपाव या नयोकपाव (युद्ध नेतृत्वकर्ता) 2.पुतसी या पेतची (शांति स्थापित करनेवाला) 3.अमपाव, मेवो या मेया (पुजारी) 4.किओ लोमेई (चिकित्सक) 5.आइन (पुजारिन) 6.शोअलंग (लोहार) 7.पावथाई (कथा वाचक) 8.आइनलूम (जादूगर)
यह समुदाय कृषि से संबंधित अनेक त्योहारों का आयोजन करता है जिनमें त्सोकुम त्योहार सबसे महत्वपूर्ण है I यह खिअमनीअंगन लोगों के लिए एकता, शांति और सद्भाव का प्रतीक है। इस त्योहार में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान, समारोह और पशु बलि शामिल है। यह बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह सितंबर या अक्टूबर के पहले पखवाड़े में अच्छी फसल की कामना से मनाया जाता है। खिअमनीअंगन समुदाय के सामाजिक-धार्मिक जीवन पर इस त्योहार का अत्यधिक प्रभाव है। इस त्योहार में प्रत्येक परिवार धन – धान्य और अपने पशुधन के कल्याण व मनुष्यों के आरोग्य के लिए ईश्वर (को-ए) से प्रार्थना करता है और पशु बलि के द्वारा उस परम सत्ता को प्रसन्न करने की चेष्टा करता है। झूम खेती करने से पहले आयोजित होनेवाला यह त्योहार समर्पण का त्योहार है। त्सोकुम त्योहार के बाद ही नए झूम खेतों से कटा हुआ खाद्यान्न घर लाया और चखा जाता है। त्योहार के बाद घर और अन्न भंडार के निर्माण और मरम्मत का कार्य शुरू होता है । इसका आयोजन एक सप्ताह तक होता है जिसमें अनेक अनुष्ठान और आयोजन के द्वारा यह समुदाय अपनी उत्सवधर्मी भावनाएं प्रकट करता है I सर्वप्रथम गांव के पुजारी (अम-पाओ) द्वारा त्योहार के लिए तिथि की घोषणा की जाती है, उसके बाद प्रत्येक परिवार उत्सव को भव्य तरीके से मनाने की तैयारी शुरू कर देता है I उत्सव की तैयारी के पहले दिन को ‘सुमई जेमदाव’ कहा जाता है। इस दिन प्रत्येक परिवार की महिलाएं पर्याप्त मात्रा में मदिरा (राइस बीयर) तैयार करती हैं । महिलाएं अपनी मदिरा (चावल निर्मित मदिरा) को स्वादिष्ट और बेहतर बनाने का प्रयास करती हैं। दूसरे दिन को ‘सुमई जंकोम’ कहा जाता है। इस दिन पुरुष मिथुन, भैंस या गाय की तलाश में जंगल में जाते हैं। मिथुन, भैंस या गाय को लाने का क्रम तीसरे दिन भी जारी रहता है। चौथे दिन को ‘पाईपियु’ कहा जाता है I इस दिन आनुष्ठानिक पेड़ को लाया जाता है I यह दिन उन अमीर व्यक्तियों / योद्धाओं के लिए समर्पित रहता है जिसने मिथुन, भैंस या गाय की बलि देकर सामुदायिक भोज का आयोजन किया है I पाँचवाँ दिन हर व्यक्ति, परिवार, गाँव या समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन प्रत्येक परिवार अपने धान के खेतों में पालतू जानवरों जैसे सूअर, कुत्ते, या मुर्गे की बलि देता है। यह अनुष्ठान और बलि भरपूर फसल और परिवार के सदस्यों के आरोग्य की कामना से किया जाता है। इस अनुष्ठान में धान के खेतों में बलि पशुओं के रक्त को छिड़का जाता है और मारे गए जानवरों के जिगर और आंत को अनुष्ठान स्थल पर बिखेर दिया जाता है। छठे दिन को ‘जंगलाव’ कहा जाता है। इस दिन सामुदायिक दावत का आयोजन करनेवाले अमीर लोग / योद्धा पारंपरिक संस्कार और समारोह का आयोजन कर मिथुन, भैंस या गाय की बलि देते हैं । ‘जंगलाव’ समारोह में खेल या गाँव के केवल वयस्क और विवाहित पुरुष ही भाग लेते हैं क्योंकि पत्नी को पूरे त्योहार और पशु बलि के दौरान कुछ महत्वपूर्ण संस्कार और औपचारिक अनुष्ठान करने होते हैं। सामुदायिक भोज आयोजित करनेवाले व्यक्ति को समुदाय या ग्रामीणों द्वारा ‘जंगलाव मेईमेई’ के रूप में सम्मानित किया जाता है। सातवाँ दिन ‘जंगलाव अनो’ का आयोजन होता है I यह उन परिवारों के सम्मान में विश्राम का दिन है जिन्होंने इस त्योहार के लिए भोज और पशु बलि का आयोजन किया है I इस दिन प्रत्येक व्यक्ति मदिरा पीकर और मांस खाकर आनंदोत्सव मनाता है I त्योहार का समापन आठवें दिन होता है जिसे ‘इम्यामयम’ कहा जाता है। गाँव के पुरुष सामुदायिक तालाबों की सफाई, फुटपाथ की मरम्मत और सुधार जैसे सामुदायिक कार्य करते हैं । इस दिन युवा लड़के और लड़कियां पारंपरिक खेल खेलते हैं जिससे आपसी समझ, सहयोग और एकता की भावना सुदृढ़ होती है I इस प्रकार रिश्तेदारों, दोस्तों और मेहमानों को और यहां तक कि आनेवाले अजनबियों को भी भोजन, मांस और मदिरा साझा करने के साथ त्योहार का समापन होता है। इस त्योहार के अतिरिक्त परंपरागत रूप से झूम खेती करनेवाले खिअमनीअंगन समुदाय अच्छी फसल और सुख – समृद्धि की कामना से बुआई के समय ‘मिउ’ त्योहार भी मनाता है । इस त्योहार में वेलोग धन – धान्य और आरोग्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। यह खिअमनीअंगन लोगों के लिए एकता, शांति और सद्भाव का प्रतीक है। इस त्योहार में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान, समारोह और पशु बलि शामिल है। यह बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। खिअमनीअंगन समुदाय के सामाजिक-धार्मिक जीवन पर इसका अत्यधिक प्रभाव है। इस त्योहार में प्रत्येक परिवार धन – धान्य और अपने पशुधन के कल्याण व मनुष्यों के आरोग्य के लिए ईश्वर (को-ए) से प्रार्थना करता है और पशु बलि के द्वारा उस परम सत्ता को प्रसन्न करने की चेष्टा करता है। झूम खेती करने से पहले आयोजित होनेवाला यह त्योहार समर्पण का त्योहार है। इसका आयोजन एक सप्ताह तक होता है जिसमें अनेक अनुष्ठानों द्वारा यह समुदाय अपनी उत्सवधर्मी भावनाएं प्रकट करता है I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]