गीतिका/ग़ज़ल

रंग बदलती है ये दुनिया…

किसी के घाव पर मरहम नहीं छिड़कती है ये दुनिया।
बस मौका मिले तो जीभर घाव कुरेदती है ये दुनिया।

तुम खुद को तो समझा कर आगे बढ़ लोगे तन्हां मगर,
जाने फिर क्यों तुम्हारा हमदर्द बन संग चल पड़ती है ये दुनिया।

ज़िन्दगी में हार-जीत का अफसाना चलता रहता है,
कभी आपस में लड़वाकर अपना स्वार्थ भी सिद्ध करती है ये दुनिया।

सब एक से नहीं होते जहां में सब जानते हैं ये बात,
वो भी हां मैं हां मिला दें जत्न यही गल्त करती रहती है ये दुनिया।

खुद भी जीयो खुशहाली में औरों को भी मुस्कराने दो जीभर,
अपने हिसाब से किसी का मुकद्दर क्यों लिखना चाहती है ये दुनिया।

— कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |