स्वाद
उम्र के एक खास पड़ाव तक तो खाने में नए-नए ट्विस्ट चाहिए होते हैं न ! जैसे साऊथ इंडियन, नार्थ इंडियन, चाईनीज़, ये तड़का, वो तड़का, इसका कांबो उसके साथ, टेस्ट के लिए नार्थ इंडियन डिश में साऊथ इंडियन ट्विस्ट, कभी महाराष्ट्रियन तो कभी दाल बाटी, कभी झींगा का कुरकुरापन तो कभी तंदूरी चिकन, कभी मोमोज़ की चटनी के साथ पकौड़े तो कभी नूडल्स स्टफड पकौड़ियां, कभी जलेबी का दोना तो कभी पायसम का पूरा भरा हुआ भगौना, कभी इडली फ्राई को कभी डोसा पिज्जा!
मतलब स्वाद का एक ऐसा अंतहीन सफर जो उम्र के एक खास पड़ाव तक थमता नहीं !
लेकिन जहां यह सफर पूरा होता है वहीं से एक दूसरा सफर शुरू होता है और यह सफर स्वाद की दुनिया के सबसे ऊंचे मकाम तक पहुंचने के सबसे अद्भुत् सफर का आरंभ होता है!
स्वाद का एक ऐसा अनोखा सफर जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है !
स्वाद का वो सफर जिसमें शामिल बेहद सादा सब्जियों और दालों से न केवल भूख बल्कि आत्मा तक तृप्त हो जाती है!
वह सात्विक भोजन जिसमें हींग, जीरे, नमक और हल्दी से छौंकी गई देव तुल्य लौकी, काशीफल, तुरई, अरबी, पपीता और दाल अपनी सादगी से हमें ओत प्रोत कर यह पूछती हैं कि “क्यों इतने साल हमसे नज़रे चुराकर दूर भागते रहे , अब पता चला न कि हम तुम्हारे हर ट्विस्ट से कहीं ज्यादा स्वादिष्ट हैं!”
वाकई एक उम्र पर आकर हमारी स्वादइंद्रियां स्वयं ही अपनी मिट्टी से जुड़ाव महसूस करने लगती हैं और तब हमें उस देवतुल्य भोजन की महत्ता और स्वाद का अहसास होता है! एक ऐसा भोजन जिसमें जब तरकारियां बस दो-तीन मसालों से मिलकर बनती हैं और कहीं न कहीं तब हमें सहजता से यह अहसास भी करा जाती हैं कि उनके उस खास स्वाद को हम न जाने कितने सालों से ट्विस्ट देने के चक्कर में छिपा दिया करते थे.
सीधी-सादी दाल जो केवल हींग,जीरे, हल्दी, मिर्च और नमक में स्वयं को आत्मसात कर अपना स्वाद बरकरार रख सकती थी, उसमें न जाने किस किस प्रकार के बघार लगाकर उसके स्वाद से खिलवाड़ कर उसे छलते रहे!
तो स्वाद के फेर में पड़कर भोजन में चाहे कितने ही ट्विस्ट ट्राई कर लो, स्वादइंद्रियों को एक दिन लौट कर अपनी जड़ों से जुड़कर ही चैन पड़ेगा!
वो जड़े जहां रोटी पर केवल प्याज़ , मिर्च रख , मट्ठे के साथ खाने से भी आनंद की प्राप्ति हो जाती थी !
वैसे स्वाद के मामले में
तो चाहे ईस्ट हो या वेस्ट,
सादगी भरा भोजन
इज़ आलवेज़ द बेस्ट!