हृदयविदारक
कितना हृदयविदारक चित्र था उस प्रदर्शनी में! इस चित्र ने दर्शकों का ही नहीं स्वयं चित्र का हृदय भी चीरकर रख दिया था. किसका चित्र था, वह तो स्पष्ट समझ नहीं आ रहा था, पर चित्र का चीत्कार हृदयविदारक था.
प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था- ”हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इंसान भी धरती पर कभी आया था.” चित्र का विलाप मुखर था.
”वह आया था भारत-भू को धन्य बनाने. उसने सत्य-अहिंसा का पथ अपनाया, उसने भी विरोध किया था, लेकिन वह विरोध देश को गुलाम बनाकर रखने वालों के विरोध में था, वह भी शांतिपूर्ण असहयोग के माध्यम से. उसने अपनी पारंपरिक पोशाक को भी त्याग कर शरीर पर सिर्फ एक धोती को लपेटा, ताकि बाकी लोगों को भी वस्त्र प्राप्त हो सकें.” क्या फिर कभी ऐसा इंसान धरती पर आएगा? मानो चित्र पूछ रहा था.
”उसने देश की आजादी के लिए संघर्ष करने के लिए पूरे देश को एकजुट करने का काम किया, लेकिन देश की आजादी के बाद कोई भी सरकारी पद लेने से इनकार कर दिया था.” वाह रे राष्ट्र-प्रेमी!
”वह इतना तेज चलता था, मानो 24 घंटों में 48 घंटों का काम करना चाहता हो! सुरा उसके लिए निषिद्ध थी, धर्म उसके लिए गौण था, राष्ट्र उसके लिए प्रमुख था, उसकी निःस्वार्थ सेवा के आगे भ्रष्टाचार कैसे टिक सकता था!” चित्र की स्मृतियां मानस-पटल पर तैर रही थीं.
”उस राष्ट्र का यह हाल! राष्ट्र मानो अंतिम सांसें गिनता हड्डियों का ढांचा बन गया था! धर्म सबके लिए प्रधान बन गया था, सुरा आधुनिकता की प्रतीक, भ्रष्टाचार फैशन और कुर्सी! कुर्सी उनकी मंजिल. इस कुर्सी के लिए व्यक्ति हत्या जैसा जघन्य पाप भी कर सकता है और फिर सिर उठाकर चलने का जुगाड़ भी. इसी जुगाड़ में न्याय की देवी की हड्डियों का पिसना भी उसे मंजूर है. अनुशासन को धत्ता बताना उसका ध्येय बन गया है.” चित्र विक्षिप्त-सा हो गया था.
”उसने कहा था बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, पर आज बुरा सुनने, बुरा देखने, बुरा कहने, बुरा करने वालों का ही बोलबाला हो गया है. रात के अंधेरे में सबूत मिटा दिए जाते हैं, फिर लीपापोती का मुल्लमा चेप दिया जाता है.” चित्र का चीत्कार जारी था.
”बापू एक बार इस हृदयविदारक दृश्य को देखने के लिए ही आ जाओ!” चित्र का हृदय विदीर्ण हो गया था.
बापू से इस हृदयविदारक चित्र व मंजर को एक बार आकर देखने का अनुरोध, किया गया था. सचमुच गांधीजी दो पल के लिए भी धरापर अवतरैत हो जाते तो बेटियों की हृदयविदारक पीड़ा व चीत्कार से उनका हृदय छलनी हो जाता. अपमान और पीड़ा के बाद उनकी पीड़ा का राजनीतिकरण देखकर तो उनका वही हाल हो जाता, जो हमारा हो रहा है!