गीतिका/ग़ज़ल

उसके दर से…..

उसके दर से होकर बेकरार चले
एक बेवफा से करके प्यार चले

तन्हाई में गम को उतार चले
भीड़ से खुद को निकाल चले

साँसों से लेकर लम्हें कुछ उधार चले
अपने दामन की खुशियां तुझपर बार चले

तुझसे करके मुहब्बत अपनी दुनिया संवार चले
आंखों में अश्कों की चुभन सम्भाल चले

गिरते संभलते खाकर ठोकरे बार-बार चले
कफन की चादर में लिपटकर जहां के पार चले।

*बबली सिन्हा

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