बिहार का प्रेमचंद कौन ?
अनूपजी के उपन्यास प्रेमचंदीय उपन्यासों की भाँति प्रगतिशील यथार्थ में अंतर्निहित नहीं हैं, अपितु उनकी रचनाएँ अज्ञेयजी की रचनाओं की भाँति रोमांटिक यथार्थ से जुड़े हैं, बावजूद वे व्यक्तित्व में अज्ञेय नहीं थे !
कथा-शिल्प में भी प्रेमचंद से उनकी तुलना बेमानी कही जाएगी। कथाकार मधुकर सिंह ने लिखा है- “अनूपलाल मंडल ‘जैनेन्द्र कुमार’ के भी समकालीन रहे हैं, इनकी भावुकता का प्रभाव भी स्वाभाविक है, क्योंकि प्रेमचंद के बाद अज्ञेय, जैनेन्द्र और यशपाल सशक्त कथाकार रहे हैं । इनमें यशपाल सर्वथा अलग धारा के कथाकार हैं, जो प्रेमचंद-परंपरा के ज्यादा करीब हैं । मंडल जी में जैनेन्द्र की भावधारा के होने के बावजूद इनके विषय, पात्र, परिवेश बिल्कुल अलग रहे हैं, जो जैनेन्द्र की तरह कहीं से भी आधुनिक नहीं हैं ।”
तभी यह बात अक्सरात मानस-पटल को कुरेदता है कि उन्हें किसने बिहार के ‘प्रेमचंद’ का तमगा दिया, यह ‘पता’ किसी को नहीं है ! सर्वविदित है, कोई भी रचनाकार न सिर्फ अपने क्षेत्र, अपितु सीमापारीय होते हैं ! ‘बिहार का प्रेमचंद’ कहकर उनकी रचनाओं को शुरुआती दिनों से ही ‘संकुचित’ किया जाने की अघोषित साजिश चलती आई है, इसलिए इन उपन्यासों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में पुनर्प्रकाशित कर ही अनूपलाल मंडल की पहचान को विस्तृत फलकीय, कालातीत और चिरनीत रखा जा सकता है । डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने स्पष्ट लिखा है- “अनूपलाल मंडल प्रेमचंद की छाया में पले लेखक नहीं हैं ।
मंडल जी का औपन्यासिक धरातल प्रेमचंद से भिन्न है और सच यह भी है कि प्रेमचंद ने जो ऊँचाई प्राप्त की, वहाँ तक मंडल जी नहीं पहुँच पाए । अनूपलाल मंडल के लेखन का एक परिप्रेक्ष्य है, लेकिन वह प्रेमचंद से भिन्न है । सिर्फ समानता दोनों के उपन्यासकार होने में हैं । हाँ, मंडल जी के उपन्यास-लेखन का दृष्टिकोण विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ से मिलता-जुलता है । प्रेमचंद के ‘निर्मला’ और ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास ही मंडल जी के उपन्यासों से मेल खाते हैं !”
वहीं, प्रो. सुरेंद्र स्निग्ध ने दृढ़ता से अनूपलाल मंडल को ‘प्रेमचंद स्कूल’ का उपन्यासकार कहा है और स्निग्ध जी के कारण ही वह ‘बिहार के प्रेमचंद’ हो गए होंगे ! कहा जाता है, वे शांतिनिकेतन, बोलपुर जाकर गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर से आशीर्वाद भी लिए थे । उन्हें ‘साहित्यरत्न’ से लेकर विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ ने ‘विद्यासागर’ की मानद उपाधि भी प्रदान किया था । तभी तो डॉ. परमानंद पांडेय ने उन्हें लिखते हुए ‘अनूप साहित्यरत्न’ कहा है।