गीत
परिवर्तन है नियम प्रकृति का
यूँ ही चलता रहता है
नये रंग में नये रूप में
जीवन ढ़लता रहता है।
दुख जीवन में आया है तो
सुख भी निश्चित आएगा
कब रहता है सदा एक सा
वक्त बदलता रहता है।।
कौन यहाँ पर ऐसा है जो
विधि विधान से बाध्य नही
लेकिन यथा योग्य श्रम से है
कौन लक्ष जो साध्य नही।
अपनी किस्मत को देते हैं
दोष वही जग में केवल
कर्मों को जो धर्मों जैसा
बना सके आराध्य नही।।
ठहर सकीं साहस के सम्मुख
कहाँ विकट विपदाएं भी
कर्मयोगियों के आगे नत
होती हैं बाधाएं भी।
धैर्यवान धीरज धर करते
जब निर्णय टकराने का
राह बदल लेती हैं अपनी
ख़ुद मुँहज़ोर हवाएं भी।।
— सतीश बंसल