गीत – मेरे मन
आशाओं के मंगल दीप ,जला मेरे मन…
तिमिर निराशाओं के, अब ना ला मेरे मन..
हर रात की जब भोर हुई तो, तू क्यों रोता है
बदल जाते हैं मौसम भी ,क्यों धीरज खोता है
गहन अंधेरों में नव ,दीप जला मेरे मन…
चलता चल तू अपनी ,राह बनाता जा
सामने आए तो, बाधा विध्न हटाता जा
धीरज और लगन की ,जोत जला मेरे मन…
पतझड़ में उजडी़ बगिया ,फिर से बस जाये
ठहरें ना तूफा़न सदा ,आके फिर फिर जाये
कुछ दिन के हैं दर्द ,ना तू भुला मेरे मन…
— सुनीता द्विवेदी