रब्ब-उल-आलमीन
इस्लाम के माननेवाले हिज़री संवत के जारी माह के शुक्ल पक्ष में चंद्रदर्शन की गणित को लिए 10 वीं तारीख को मुहर्रम व मोहर्रम मनाते हैं । इस्लामिक मान्यतानुसार हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन नामक दो भाइयों के शहीदी बलिदान हो जाने की तिथि के आगामी वर्षगाँठ लिए हर साल ‘मोहर्रम’ मनाये जाने की परंपरा है । इस उपलक्ष्य में सभी अनुयाइयों को मेरा सलाम। ध्यातव्य है, शुक्ल पक्ष भी चाँद के उजियारा पख से है । हिज़री संवत् के प्रथम माह ‘मुहर्रम’ के उजियारा पख के चाँद दिखाई से 10 वीं तारीख , बस।
मोहर्रम (MOHARRAM) में लगा शब्द ‘राम’ ( RAM) हिंदुओं के आदर्श है, तो दीपावली (DEEPAWALI) या दीवाली (DEEWALI) में लगा शब्द ‘अली’ (ALI) मुसलमानों के आदर्श हैं । इससे लगता है, हिंदी-मुस्लिम एक-दूसरे के पूरक हैं । किसी के कोई त्यौहार हमारी एकता की अक्षुण्णता के लिए है । तभी तो इस्लामिक ग्रंथानुसार ‘रब्ब-उल-आलमीन’ लिखा गया है , ‘रब्ब-उल-मुसलमीन’ नहीं ! इसलिए ‘रब्ब’ सबके हैं, किसी एक के नहीं।
‘मुहर्रम संबंधी किसी के पास और यथेष्ठ जानकारी है, तो बताएँगे अथवा किसी को लगता है कि मेरे द्वारा देय जानकारी गलत है, इसे बताने और सुस्पष्ट करने की महती कृपा करेंगे । गम और त्याग और बलिदान के इस ‘मुहर्रम’ में भी शामिल हूँ ।