ग़ज़ल
वक़्त अपना नहीं करो जाया।
वक़्त है क़ीमती बहुत काया।
रौशनी हो तो साथ रहता है,
साथ छोड़े है रात में साया।
साथ जाते फ़क़त करम अपने,
और सब इस जहां में है माया।
बातअपने रफी की क्या कहिए,
एक से एक गीत है गाया।
चीज़ हर एक यूँ लगी अच्छी,
कलसे भूखा था आज है खाया।
— हमीद कानपुरी