चार बाल गीत- 6
1.हिंदी है भारत की शान
हम हैं आज के जागरुक बच्चे,
हिंदी से है हमको प्यार,
भाषाएं कितनी भी सीखें,
निज भाषा अपना उपहार.
आओ हिंदी को अपनाएं,
हिंदी है भारत की शान,
राष्ट्र की, राज-काज की भाषा,
मातृभाषा मधुर-महान.
2.हे प्रभु मन अच्छा ही रखना
हम हैं छोटे फिर भी देखो,
महक हमारी जग महकाए,
जैसे छोटी-सी इक कोयल,
चहक-चहक जग को चहकाए.
प्रभु ने अच्छा मन दे डाला,
सुमन हमारा नाम पड़ा,
हे प्रभु मन अच्छा ही रखना,
होगा यह उपकार बड़ा.
3.करके देखो प्रकृति से प्यार
स्वच्छ हवा में सांस ले सकें,
मिल पाए पर्याप्त स्वच्छ जल,
देती यह संदेश प्रकृति,
खुशहाली में बीते हर पल,
हवा शुद्ध हो, स्वच्छ हो पानी,
यह हम सबका है अधिकार,
पर्यावरण दिवस समझाता,
करके देखो प्रकृति से प्यार.
4.रावण को अब जलना होगा
हरण किया माता सीता का,
रावण ने परिणाम न सोचा,
शक्ति राम की जान न पाया,
हुआ जान का था अब लोचा.
रावण को अब जलना होगा,
पाप का फल तो भुगतना होगा,
कहता दशहरा सीख लो इससे,
धर्म के पथ पर चलना होगा.
-लीला तिवानी
आज की चर्चा मंच, जैमिनी अकादमी का यह सम्मान हमें आप सब लोगों की दुआओं से मिला है.
नमस्ते आदरणीय बहिन जी। आज आपकी इन चारों कविताओं को पढ़ने का अवसर मिला। बहुत आनन्द आया। वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप हैं आपकी कवितायें। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको इसी प्रकार से हमारा मार्गदर्शन करते रहने की शक्ति दें।
आदरणीय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि हमेशा की तरह यह रचना, आपको बहुत अच्छी व प्रेरक लगी. हमें भी आपकी ‘ आज आपकी इन चारों कविताओं को पढ़ने का अवसर मिला। बहुत आनन्द आया। वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप हैं आपकी कवितायें। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको इसी प्रकार से हमारा मार्गदर्शन करते रहने की शक्ति दें..” के प्रेरक संदेश से सुसज्जित प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया लाजवाब लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
आदरणीय मनमोहन भाई जी, आपकी वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप दृष्टि पटल को बाल कविताएं वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप लगीं, यह हमारे लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रशस्ति पत्र है. हम आपकी इस अप्रतिम प्रतिक्रिया के बहुत-बहुत आभारी हैं.
नमस्ते आदरणीय बहिन जी। आज आपकी इन चारों कविताओं को पढ़ने का अवसर मिला। बहुत आनन्द आया। वैदिक सिद्धान्तों के सर्वथा अनुरूप हैं आपकी कवितायें। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको इसी प्रकार से हमारा मार्गदर्शन करते रहने की शक्ति दें। सादर।
दशहरे पर रावण जलता है,
मानो अधर्म का अंत होता है,
धर्म का सूर्य तो चमकता ही है,
पाप के पक्ष में अंधकार रोता है.