गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

चाँदनी रात दिल को लुभाने लगी …..
मोतियों की लड़ी सी सजाने लगी …..

दिलरुबा तुम अभी आ भी जाओ ज़रा …..
शीतल हवा तुझे तो बुलाने लगी …..

राह में अब बिछे फूल ही फूल हैं…..
आज तन्हा घड़ी भी सताने लगी …..

रूप की चाँदनी है बिखेरी यहाँ …..
लो महक भी यहाँ पर समाने लगी …..

आ चलें हम गगन से कहीं दूर ही …..
दिल के अरमां अभी ये जगाने लगी …..

लो सुनो हमसफ़र ये अभी बात भी …..
इक ख़ुमारी मुझे तो झुलाने लगी …..

चाँदनी भी खिली नाचती सी लगे …..
छमाछम आज घुँघरू बजाने लगी …..

अब करो काम तुम भी सभी के लिए …..
हक़ अभी ही मुझी पर जताने लगी …..

गूँजती है सुनो बाँसुरी भी कहीं …..
धुन सुहानी अभी वो बजाने लगी …..

खुश अभी चाँदनी मुस्कुराती रही …..
अब सपन में मुझे तो सुलाने लगी …..

छा उदासी गयी रो रही चाँदनी …..
आज जाते हुये तिलमिलाने लगी …..

— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘