धरती कहीं पुरुषशून्य न हो जाय !
सिर्फ फ़िल्म से जुड़े पुरुष पात्र ही नहीं, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद, उद्योगपति तक मीटू के शिकार होंगे!
भगौड़ेपन से निजात पाने के बाद भी क्या ‘विजय माल्या’ को ‘किंगफिशर कैलेंडर-गर्ल्स’ यूँ ही छोड़ देंगे!
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मीटू के कारण कई ‘पद्म अवार्डी’ का पदक छीने चले जायेंगे!
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एक दिन ऐसा आएगा, मीटू के कारण पुरुष-स्त्रियाँ आपस में कार्य करना और बोलना तक छोड़ देंगे!
कहीं धरती पुरुष-शून्य न हो जाय!
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भारत की पहली फ़िल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ में हरिश्चन्द्र की पत्नी शैव्या व तारामती की भूमिका एक ‘पुरुष’ ने ही निभाया था !
मीटू के कारण सिनेमा में अब यही देखने को मिलेंगे!
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भारत में देवर-भौजाई के साथ, सलहज-नंदोशी के साथ, जीजा-साली के साथ, देवर और भाभी की बहन के साथ हँसी-मजाक तो ‘हँसगुल्ले’ की तरह चलते-रहते हैं ! मीटू के कारण यह सभी मजाक बन्द हो जाएंगे!
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असफलता अथवा असफल प्रेम का प्रतीक तो नहीं है मीटू अभियान !
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होटल रिसेप्शनिस्ट की मुस्कराहट, एयर होस्टेस द्वारा नैनों से तीर चलाने की स्वभाविकता, फिल्मों के अंग-उघेड़न डांस, किसिंग सीन, द्विअर्थी संवाद और गाने, स्कूल-कॉलेजों में सह-शिक्षा और सह-अध्यापन इत्यादि को रोक सको, तो मीटू अभियान सफल हो सकता है! अन्यथा, गड़े मुर्दे को उखाड़ते रहिये! पुरुष होने के नाते नहीं, बल्कि आपने परम सत्य कहा है, सर!