किसी ने सच कहा है कि….
अपने नाम के खत को, दूसरों से पढ़ाए नहीं जाते !
हर किसी शख्स को, हमराज बनाए नहीं जाते !
किसी ने यह भी कहा है-
कितनी बार जला हूँ, कितनी बार बुझा हूँ?
कसूर यही मेरा, मैं मिट्टी का दीया हूँ !
पर हमने यही कहा है कि
अपने नाम के खत को, दूसरों से पढ़ाए नहीं जाते !
हर किसी शख्स को, हमराज बनाए नहीं जाते !
और-
कोई होठों से लगा लें, नींद आ जायेगी,
कोई कह दे ‘मैं हूँ ना’, ज़िन्दगी कट जाएगी!
फिर-
ये मिली ज़िन्दगी तन्हा, पे मिलकर काटिये,
मौत से अच्छा, दिल की तन्हाई झेल जाइये!
तब फिर-
नाम सागरमाथा है, एवरेस्ट का – यारों यहाँ!
पर एवरेस्ट का सागर से दोस्ती – सम्भव कहाँ?
और भी-
कुछ दिनों तक कह चले – हम साथ-साथ हैं,
पर कहते अब – हम आपके कौन हैं ?