सूनी रात बिताई उसने
आई तुम्हें तब हिचकी होगी।
करवटों में सिमट-सिमट कर
रह गई उसकी सिसकी होगी।
छूटी न थी हाथ की मेंहदी
तुम चले फर्ज निभाने को।
दुश्मनों से लेकर लोहा
वतन की रक्षा करने को।
रो-रो कर उसने तो अपनी
पपीहा पीर सुनाई होगी।
सूनी रात बिताई उसने
आई तुम्हें तब हिचकी होगी।
करवटों में सिमट-सिमट कर
रह गई उसकी सिसकी होगी।
तुम खड़े बारूद ढेर पर
झेल रही वो प्रसव पीड़ा।
शहीद हुए तुम सीमा पर
उसने पाया पुत्र हीरा।
लेकर बांहों में उसको
राह तुम्हारी देखी होगी।
सूनी रात बिताई उसने
आई तुम्हें तब हिचकी होगी।
करवटों में सिमट-सिमट कर
रह गई उसकी सिसकी होगी।
लिपट तिरंगे में शव आया
उसकी पीड़ा समझ न पाया।
लगा पुत्र को उस छाती से
शत शत उसने शीश नवाया।
पति न्यौछावर वतन की खातिर
अब पुत्र की बारी आयी होगी।
सूनी रात बिताई उसने
आई तुम्हें तब हिचकी होगी।
करवटों में सिमट-सिमट कर
रह गई उसकी सिसकी होगी।
— निशा नंदिनी भारतीय