गरीबी
मेरे सपने मेरा वजूद चन्द कागज के टुकड़े में बिक जाये।
मेरे जज्बात मेरे एहसास लालच में मिट जाये।
मेरी आत्मा मुझसे सवाल करेगी,
क्या मुझे दौलत ही मालामाल करेगी,
परम्परा में शामिल थी मेरी गरीबी।
जन्म से ही है मेरी बदनसीबी।
अब देखना है कहाँ लाकर खड़ा करेगी।
मेरे हौसलों को कब तक दफन करेगी।
मिटने न दूँगी अपने सपने, अपने हौसलों को।
अडग रहूँगी तोड़ूंगी उन जंजीरों को,
और दूर करूंगी बिना बिके अपनी गरीबी ।