नवरात्रि में सिद्धिदात्री मां तारा का पूजन
हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता है ।हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में नालागढ़ तहसील में पहाड़ी के ऊपर मां तारा देवी का कुदरत की वादियों में एक छोटा -सा प्राचीन मंदिर है। जीवनदायिनी मनोकामनाएं पूर्ण करती मां तारा नालागढ़ शहर अपनी गोद में बिठाए विराजमान हैं।
नालागढ़ का एक प्राचीन इतिहास है। इतिहास के पन्नों में पहले इसे #हंडूर रियासत के नाम से जाना जाता था। बाद में इसका नाम #नागगढ़ पड़ा। समय के साथ -साथ नागगढ़ से नालागढ़ प्रचलित हो गया।
नालागढ़ को हिमाचल का मुख्य द्वार भी कहा जाता है क्योंकि यही से हिमाचल की शुरुआत होती है। नालागढ़ से मां तारा देवी मंदिर की दूरी 5 किलोमीटर है ।प्रकृति वादियों पहाड़ों के बीच से होती हुई सड़क माता के दरबार पर पहुंचती है माता का भव्य मंदिर मां तारा देवी दसों महाविद्याओं में दूसरे स्थान पर है। इस मंदिर का निर्माण राज परिवार द्वारा कई सदियों पहले किया गया था ।
मां तारा देवी की कथा देवी भागवत पुराण के अंतर्गत जब दैत्य और देवों ने समंदर मंथन किया तो समुंद्र मंथन में से जो विष की उत्पत्ति हुई उस विष को भगवान शंकर ने जब ग्रहण किया। तो उस विष की जलन से उनका कंठ जलने लगा मां तारा ने प्रगट होकर अपने दूध से उस विष की ज्वाला को शांत किया। भगवान शिव की मातृ- रूप में मानते हैं।
नवरात्रों में यहां नवरात्रि आयोजन और जागरण में हजारों की संख्या में भक्त श्रद्धालु आते है। राजाओं के समय से इस मंदिर के पुजारी रहे स्वर्गीय सूरजमणि के परिवार की तीसरी पीढ़ी श्री असीम शर्मा, श्री विवेक शर्मा इस दायित्व को मां के चरणों में श्रद्धा से निभा रहे हैं।
मां तारा ज्ञान और गुप्त विद्याओं की अधिष्ठात्री देवी है ।आजकल गुप्त नवरात्रि चल रहे है ।मां का पूजन करने वाले को बुद्धि विद्या और शत्रु का कभी भय नहीं होता मां तारा का सिद्धि काल रात्रि 12:00 बजे से आरंभ होता है जो भक्त मां का ध्यान करता है वह सभी कलाओं से संपूर्ण हो जाता है।
— प्रीति शर्मा “असीम”