ग़ज़ल
प्यास दिल का अभी तो बुझा ही नहीं
इश्क क्या है पता भी चला ही नहीं |
गर शिकायत मैं रब से करूं, तो कहूं
जिंदगी तो मिली, सुख मिला ही नहीं |
ढूंढता था दवा इश्क का मैं यहां
इस दवा खाने’ में तो दवा ही नहीं |
जीत उसने लिया साम या दाम से
पाप या पुण्य कुछ भी लगा ही नहीं |
सिर्फ पैसा हुआ दोस्त रिश्ता गया
आपसी प्यार तो अब रहा ही नहीं |
जाति या धर्म कातिल बने प्रेम का
प्रेम में खुशखबर तो पढ़ा ही नहीं |
घोषणा तो बहुत कर दिया झूठ में
काम अच्छा कभी वह किया ही नहीं |
कालीपद ‘प्रसाद’