ग़ज़ल
नींद में भी देखता, कोई बुलाता है मुझे
जोर से आवाज देकर, ज्यूँ जगाता है मुझे |
गुनगुनाता आप अपने, मेरे मन पाखी कभी
जानता हूँ, वो मधुर गाना सुनाता है मुझे |
सुख, खुशी, रस से भरी इक जिंदगी ही चाहिए
हर दफा जानम खुशी-झूले झुलाता है मुझे |
सर्वदा जानम किया उद्यम सदा, मैं खुश रहूँ
हर इशारा से रुलाकर फिर हँसाता है मुझे |
यूं समझना हमनशीं तेरा करूं दीदार मैं
ये नजाकत, रूठ जाना तेरा’ भाता है मुझे |
जब मनाता है मुझे, कहता मुझे वो प्यार से
रूप की रानी ते’रा हँसना लुभाता है मुझे |
ये रुलाना,ये हँसाना,ये सताना और भी
सीख ‘काली’ राज जीवन का सिखाता है मुझे |
कालीपद ‘प्रसाद’