गीतिका/ग़ज़ल

कब से…..

ढूंढता रहा मैं जाने तुम्हें कब से
भटकता रहा अनजाने से कब से
बड़ी मन्नतों से पाया है तुम्हें रब से

दी है जगह पहला तुम्हें सब से
बना ली हैं दूरियां मैंने सब से
बसी हो दिल में मेरे जब से

ख्वाबों में बसाया है तुम्हें जब से
जिंदगी हसीन हुई है तब से
जीने की आस जगी है तब से

खुशियां देती हैं दस्तक तुमसे
भूल जाता हूँ गम मिलके तुमसे
मिले हो तुम मुझे जब से

मिलता हूँ रोज मैं रब से
करने लगा हूँ दुआएं मैं जब से
पाया है आफताब मैंने जब से

*बबली सिन्हा

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